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________________ २१८ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास दूर करने के लिए आपने विशेष रूप से कार्य किये। श्रमण संघ के निर्माण से पूर्व भी आप पंजाब सम्प्रदाय में उपाध्याय पद पर थे। श्रमण संघ निर्माण के पश्चात् आपको प्रथम मंत्री पद पर विभूषित किया गया। ८ जनवरी १९७४ को करोलबाग (दिल्ली) में आपका स्वर्गवास हो गया। आपके पाँच शिष्य हुए- श्री बनवारीलालजी, श्री तुलसीरामजी, श्री दयाचन्दजी, श्री ओममुनिजी और श्री जिनदासजी। मुनि श्री बारुमलजी आपका विशेष परिचय उपलब्ध नहीं होता है। आप मुनि श्री वृद्धिचन्दजी के अन्तिम शिष्य थे। मुनि श्री बनवारीलालजी आपका जन्म उत्तर प्रदेश के कांधला के निकटवर्ती ग्राम आणदी में वि०सं० १९६२ में हुआ था। आपके पिताजी का नाम श्री जयदयालजी सैनी और माता का नाम श्रीमती नन्हीदेवी था। वि० सं० १९९० में हरियाणा के खेवड़ा में आपने दीक्षा ग्रहण की । आपके एक शिष्य श्री पार्श्वमुनिजी हुए। पार्श्वमुनिजी का जन्म गढ़वाल के टीहरी समीपस्थ पैनुला ग्राम में हुआ। इनकी माता का नाम श्रीमती नन्दादेवी और पिता का नाम श्री हिमानन्द जी डंगवाल है। वि०सं० २०२६ भाद्र शुक्ला दशमी को दिल्ली के चाँदनी चौक में आपकी दीक्षा हुई। आपके एक शिष्य हैं- श्री पारसमुनिजी मुनि श्री तुलसीरामजी आपका जन्म वि०सं० १९५४ में हुआ। पंजाब के फरीदकोट में वि०सं० १९९५ श्रावण शुक्ला त्रयोदशी को दीक्षा हुई । आप मुनि श्री प्रेमचन्दजी के अग्रज थे। मुनि श्री दयाचन्दजी आपका जन्म उ०प्र० के सैनपुर के पड़ासौली में वि०सं० १९७८ आश्विन पूर्णिमा को हुआ। आपके पिता का नाम श्री नवलसिंह सैनी और माता का नाम श्रीमती गेंदादेवी था। वि० सं० २०१५ मार्गशीर्ष त्रयोदशी को आप दीक्षित हुए। मुनि श्री. ओममुनिजी. आपकी दीक्षा वि० सं० २०१६ माघ मास में फरीदकोट में हुई । इसके अतिरिक्त और जानकारी नहीं प्राप्त होती है। मुनि श्री जिनदासजी आपका जन्म जीन्द के बड़ौदा ग्राम में वि०सं० १९६४ कार्तिक शुक्ला पंचमी को हुआ। आपके पिता का नाम श्री देवीचन्द्रजी जैन और माता का नाम श्रीमती सोनबाई था। गृहस्थ जीवन छोड़कर वि०सं० २०२० मार्गशीर्ष पूर्णिमा को मालेरकोटला में आपने आर्हती दीक्षा अंगीकार की। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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