SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 226
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०८ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास मायारामजी की शिष्य परम्परा मुनि श्री नानकचन्दजी आपका जन्म वि०सं० १९१३ मार्गशीर्ष कृष्णा द्वादशी को बड़ौदा में हुआ। यद्यपि मूलत: आप शीशला ग्राम के निवासी थे। बड़ौदा में आपका ननिहाल था। आपके जन्म से पूर्व ही आपके पिताजी का देहान्त हो गया था । अत: माता अपने पिताजी श्री अखेरामजी के पास बड़ौदा आ गयी थीं। इसलिए आपका जन्म बड़ौदा में माना जाता है। बाल्यकाल में आपकी माता का देहावसान हो गया। युवावस्था में आपने अपने मित्र श्री केसरीसिंहजी व श्री देवीचन्दजी के साथ वि० सं० १९३७ मार्गशीर्ष कृष्णा पंचमी को मुनि श्री मायारामजी का शिष्यत्व स्वीकार किया। मुनि श्री मायारामजी के सानिध्य में आपने आगम, स्तोत्र, नय, निक्षेप, प्रमाण एवं जैन न्याय आदि का तलस्पर्शी अध्ययन किया। ज्ञान के साथ तप पर भी आपने उतना ही बल दिया। आपने अपने मुनि जीवन में कभी नया कपड़ा अपने शरीर पर नहीं डाला। अन्य मुनियों का पुराना कपड़ा ही उपयोग में लेते थे। आपने १२ वर्ष तक केवल छाछ पर ही अपना जीवन बिताया। आप हमेशा स्वाध्याय में ही संलग्न रहते थे। जींद (हरियाणा) में आपका स्वर्गवास हो गया। स्वर्गवास की तिथि ज्ञात नहीं है। ____ आपके चार शिष्य थे- श्री कृपारामजी, श्री जड़ावचन्दजी, श्री मोहनसिंहजी, श्री सुगनमुनिजी। मुनि श्री देवीचन्दजी आपका जन्म बड़ौदा में हुआ । आपके पिता का नाम चौधरी मसाणियाराम तथा माता का नाम श्रीमती सुखमां देवी था। आप अपने माता-पिता की एकलौती सन्तान थे। विवाह का प्रस्ताव ठुकराकर वि० सं० १९३७ मार्गशीर्ष कृष्णा पंचमी को आप मुनि श्री मायारामजी के शिष्यत्व में दीक्षित हुए। आप कठोर वृत्ति के उग्रसंयमी सन्त थे । उदयपुर में आपका स्वर्गवास हो गया। स्वर्गवास तिथि उपलब्ध नहीं है। मुनि श्री छोटेलालजी आपके विषय में विशेष जानकारी नहीं मिलती है । आप मुनि श्री मायारामजी के शिष्य थे । अनुशासन प्रिय थे । ऐसा माना जाता है कि आपने १२ आगमों को और ७०० थोकड़ों को कंठस्थ किया था। मुनि श्री मायारामजी के स्वर्गस्थ होने पर आचार्य श्री सोहनलालजी ने आपको गणावच्छेक पद प्रदान किया था। वि० सं० १९९२ कार्तिक शुक्ला एकादशी को आप समाधिमरण को प्राप्त हुये। आपके पाँच शिष्य हुए- श्री रूपलालजी, श्री नाथूलालजी, श्री राधाकिशनजी, श्री रतनचन्दजी और श्री बलवन्तरायजी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy