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________________ आचार्य लवजीऋषि और उनकी परम्परा २०५ है। आपकी दिनचर्या का अधिकांश भाग ध्यान-समाधि में व चिन्तन-मनन-लेखन आदि में व्यतीत होता है। आप द्वारा रचित साहित्यों के नाम हैं भारतीय धर्मों में मोक्ष विचार, ध्यान : एक दिव्य साधना, नदी नाव संजोग, शिववाणी, अनुश्रुति, अनुभूति, ध्यान-साधना, समय गोयम मा पमायं, अनुशीलन, 'Thd Doctrine of Liberation in Indian Religion', 'The Jaina Pathway to Liberation', 'The Fundamental Principles of Jainism', 'The Doctrine of the Self in Jainism', 'The Jaina Tradition.' आपके संयमपर्याय की ही विशेषता है कि आप श्वे० स्था० श्रमण संघीय चतुर्थ पट्टधर हैं, सुविशाल गच्छ के नायक हैं, जीवन-संस्कार निर्माण हेतु ध्यान शिविरों के संप्रेरक हैं, आगमज्ञाता हैं, लेखक-साहित्यकार, सरल स्वभावी व मधुर वक्ता हैं। समग्र जैन समाज में आप एक ऐसे आचार्य हैं जिन्होंने पी-एच०डी० व डी०लिट० की उपाधि प्राप्त की है। पंजाब सम्प्रदाय (अमरसिंहजी) के प्रभावी सन्त' मुनि श्री नीलोपदजी __आपका जन्म पंजाब प्रान्त के सुनामनगर के निवासी लोढ़ा गोत्रीय ओसवाल श्री मोहनसिंहजी के यहाँ वि०सं०१८७४ फाल्गुन शुक्ला दशमी दिन गुरुवार को हुआ । आपकी माता का नाम श्रीमती कानकुँवर था। युवावस्था में विवाह हुआ । कुछ समयोपरान्त पत्नी का वियोग मिला । मुनि श्री रामबख्शजी के सान्निध्य में आये। धार्मिक क्रिया में आप पहले से ही संलग्न रहते थे। ऐसा उल्लेख मिलता है कि गृहस्थावस्था में भी बेला, तेला, अठाई, पन्द्रह-पन्द्रह दिन का तप कर लेते थे। गहस्थ जीवन में आपने मासखमण भी किया था। वैराग्य जब शीर्ष पर पहुँचा तब आपने वि०सं० १९१९ फाल्गुन मास में पूज्य श्री रामबख्शजी के सानिध्य में दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् भी आपका तप जारी रहा। आपने अपने संयमपर्याय में २५ चातुर्मास किये और प्रत्येक चातुर्मास में एक मासखमण करते थे। मासखमण के साथ-साथ कुछ चातुर्मासों में अलग से भी तप किया करते थे,जैसे- दिल्ली चातुर्मास में ८० दिन तप और ४० दिन आहार, बड़ौदा में ८४ दिन तप और ३६ दिन आहार। रोहतक में ८८ दिन तप और ३२ दिन आहार, पटियाला में ९० दिन तप और ३० दिन आहार, मालेरकोटला में ९० दिन तप और ३० दिन आहार। आपकी तप साधना के कारण ही आपको तपस्वी नाम से भी सम्बोधित किया जाता था। आप केवल छ: द्रव्यों-रोटी, पानी, खिचड़ी, कढ़ी, छाछ, औषध एवं सात वस्त्रों का ही प्रयोग करते थे। वि०सं० १९४४ फाल्गुन चतुर्दशी को आपका स्वर्गवास हो गया। आपके २५ चातुर्मास स्थल निम्नलिखित हैं+ ‘महाप्राण मुनि मायारामजी', लेखक- श्री सुभद्रमुनि पर आधारित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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