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________________ १८४ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास मुनि श्री मोहनलालजी - आपका जन्म शाहपुरा के निकटवर्ती ग्राम के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। आप श्री छोगालालजी शिष्य थे। १७ वर्ष की अवस्था में आपने दीक्षा ग्रहण की थी। १६ आगामों को आपने कंठस्थ किया था और शताधिक उपदेशिक स्तवन, चरित्र, श्लोक, सवैया आदि भी कंठस्थ थे- ऐसा उल्लेख मिलता है। वि०सं० २०४४ भाद्र कृष्णा दशमी को शाहपुरा में आपका स्वर्गवास हो गया। मुनि श्री महेन्द्रमुनिजी 'कमल' - आपका जन्म चित्तौड़ के बेगू में हुआ। १२ वर्ष की उम्र में आप मुनि श्री मोहनलालजी से दीक्षित हुए। पठन-पाठन में रुचि होने के साथ-साथ लेखन में आपकी विशेष रुचि रही । आप 'व्याख्यान वाचस्पति', 'जैनधर्म प्रभाकर' आदि विशेषणों से विभूषित किये गये थे। आप श्रमण संघ में 'सलाहकार' के पद पर रहे, किन्तु दुर्भाग्यवश संयम मार्ग से च्युत हो गये। मुनि श्री अरविन्दमुनिजी - आपका जन्म भी बेगू में हुआ। लधुवय में आप दीक्षित हुए। स्वभाव से आप सरल एवं मधुरभाषी हैं, आपके सम्बन्ध में विशेष जानकारी नहीं मिलती है। मुनि श्री राकेशमुनिजी - आप श्री अरविन्दमुनिजी के शिष्य हैं । आपके विषय में विशेष जानकारी नहीं मिल सकी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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