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________________ १७८ वि० सं० स्थान २०३४ इन्दौर जसवंतगढ़ सादड़ी २०३५ २०३६ २०३७ २०३८ २०३९ पीपाड़ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास स्थान वि० सं० बैंगलोर २०४५ मद्रास २०४६ सिकन्दराबाद २०४७ उदयपुर २०४८ राखी २०४९ जोधपुर २०५० मदनगंज-किशनगढ़ २०५१ दिल्ली २०५२ दिल्ली (वीरनगर) २०५३ पाली २०५४ अहमदनगर २०५५ २०४० २०४१ सिवाना भीलवाड़ा लुधियाना पानीपत दिल्ली उदयपुर इन्दौर २०४२ २०४३ २०४४ अन्य प्रमुख मुनिगण पं० मुनि श्री हीरामुनिजी आपका जन्म राजस्थान के उदयपुर जिलान्तर्गत वास ग्राम में वि०सं० १९२० में हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती चुनीबाई व पिता का नाम श्री पर्वत सिंह था। आपने साध्वी श्री शीलकुंवरजी को अपना गुरुणी स्वीकार किया और उनकी प्रेरणा से महास्थविर श्री ताराचंदजी के सानिध्य में आप दीक्षित हुये। जीवन पराग, मेघचर्या, जैन जीवन, भगवान महावीर आदि पुस्तकों की आपने रचना की है। राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, दिल्ली आदि प्रान्त आपके विहार क्षेत्र रहे हैं। मुनि श्री गणेशमुनिजी शास्त्री आपका जन्म उदयपुर जिलान्तर्गत करणपुर में वि०सं० १९८८ फाल्गुन शुक्ला चतुर्दशी को हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती तीजकुंवर बाई तथा पिता का नाम श्री लालचन्दजी पोरवाल था। आप महासती प्रभावतीजी की प्रेरणा से वि०सं० २००३ आश्विन शुक्ला दशमी के दिन उपाध्याय श्री पुष्करमुनिजी के पास दीक्षित हुये। आप संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, गुजराती, राजस्थानी आदि कई भाषाओं पर आपका समान अधिकार है। आप ‘सहित्यरत्न' और 'शास्त्री' की उपाधि से सम्मानित हैं। धर्म. दर्शन, विज्ञान एवं अध्यात्म से सम्बन्धित आपने अनेक ग्रन्थ लिखें हैं। कहानी, उपन्यास, नाटक, मुक्तक, क्षणिकाएँ, गीत आदि विधाओं में लगभग ७५ ग्रन्थों का प्रणयन व आलेखन किया है। सन् १९९५ में राष्ट्रपति श्री शंकरदयाल शर्मा द्वारा दिल्ली में आपको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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