SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निषेध कर अपने पूर्वजों की उपलब्धियों से अपने आप को वंचित रखा है, किन्तु उसका सबसे बड़ा अवदान यह है कि उस युग में जब जैन समाज की आस्था के केन्द्र मंदिर धाराशायी हो रहे थे और मूर्तियाँ खण्डित हो रही थी तब जनसाधारण की आस्था को एक सरल और सहज साधना-पद्धति से जोड़कर उसे सुरक्षित बनाया है। ऐसे एक क्रान्तिकारी सम्प्रदाय के इस इतिहास को प्रस्तुत करते हुये हम स्वयं अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। समग्र स्थानकवासी समाज के इतिहास के लेखन का यह प्रथम प्रयास है। कमियाँ स्वाभाविक हैं, लेकिन हम हमारे प्रबुद्ध पाठकों को आश्वस्त करना चाहेंगे कि जिस प्रकार के परिवर्तन, परिमार्जन और परिशोधन के निर्देश हमें मिलेंगे, आगामी संस्करणों में उन्हें दूर करने का प्रयत्न किया जायेगा। प्रस्तुत कृति के संकलन और लेखन में हमें जिन-जिन व्यक्तियों और ग्रन्थों का सहयोग मिला है। उसका हमने यथास्थान उल्लेख किया ही है, फिर भी हम उन सभी के प्रति आभार व्यक्त करते हैं, जिन्होंने इस कृति के प्रणयन, प्रकाशन और वितरण में हमें सहयोग प्रदान किया है। शाजापुर ०५.०७.०३ सागरमल जैन विजय कुमार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy