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________________ लोकाशाह और उनकी धर्मक्रान्ति ११७ वन्दन करना, उसे दूध पिलाना आदि धर्म हो जायेगा? (किन्तु यह मान्यता जैन परम्परा से सहमत नहीं है।) ११. कुछ लोगों का कहना है कि हमारे द्वारा प्रतिमा पूजन में हुई हिंसा अहिंसा है तो फिर रेवती ने भगवान् के लिए जो पाक बनाया था उसे भगवान् ने क्यों नहीं स्वीकार किया । चूँकि वह पाक आधाकर्मी था इसलिए स्वीकार नहीं किया । इसी प्रकार फूल, सचित्त जल आदि से भक्ति करना अथवा साधु के लिए लड्ड जलेबी आदि बनाकर देना पुण्य कैसे होगा? इस सम्बन्ध में विज्ञजन शान्त हृदय से विचार करें । १२. यदि किसी व्यक्ति ने वाणिज्य नहीं करने का नियम नवभंगों सहित लिया है । यदि वह दूसरे को वाणिज्य में लाभ आदि दिखाता है (और इस प्रकार उसका अनुमोदन करता है) तो क्या उसका नियम भंग नहीं होगा? यदि यह मानें कि उसका व्रत भंग होगा तो जिसने नवभंगों सहित पंचमहाव्रतों का ग्रहण किया है उसके द्वारा सावध क्रियाओं में लाभ दिखाना उसके व्रतों को भंग नहीं करेगा क्या? विचार करें । १३. अरिहन्त की स्थापना में अरिहन्त के गुण नहीं हैं, सिद्ध की स्थापना में सिद्ध के गुण नहीं हैं । इस सम्बन्ध में कुछ (मूर्तिपूजक) लोगों का कहना है कि स्थापना में तो गुण नहीं है, किन्तु हम उसमें उन गुणों का आरोपण करके उसका वन्दन आदि करते हैं। गुणविहीन देव या गुरु की स्थापना में गुणों का आरोपण करने से यदि कोई गरज हल होती है तो फिर अन्य वस्तुओं में चाँदी, सोने, जवाहरात, गुड़, शक्कर आदि में भाव करने से क्या कोई गरज हल होगी ? विज्ञजन विचार करें देव, गुरु आदि की स्थापना से कोई गरज सधती नहीं है । वस्तुत: वन्दनीय तो ज्ञान-दर्शन-चारित्र आदि गुण ही हैं। इस प्रकार ये तेरह प्रश्न लोकाशाह द्वारा पूछे गये, जिनका उत्तर सूत्रों के साक्ष्य से पार्श्वचन्द्र गणि ने लिखा है । पार्श्वचन्द्र गणि ने इन प्रश्नों का क्या उत्तर दिया इस चर्चा में न जाकर केवल इतना ही निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि लोकाशाह के द्वारा ये तेरह बातें स्वीकार्य नहीं थीं। दूसरे शब्दों में कहें तो लोकाशाह जिन-प्रतिमा के वन्दन, पूजन आदि के समर्थक नहीं थे । यदि वे समर्थक होते तो ये प्रश्न नहीं उठाते। (लोकाशाह की यह कृति लालभाई दलपत भाई इन्डोलॉजिकल इंस्टीट्यूट अहमदाबाद में हस्तलिखित पुस्तक सं० २४४६६ पर है।) लोकाशाह की एक अन्य कृति 'यह किसकी परम्परा' भी उपलब्ध होती है। इस कृति में मुख्य रूप से उस युग में आगम विरुद्ध जो प्रवृत्तियाँ प्रचलित थीं उन पर प्रश्नचिह्न खड़ा किया गया है । लोकाशाह इन प्रश्नों के माध्यम से यही पूछना चाहते हैं कि वर्तमान में जो प्रवृत्तियाँ चल रही हैं उसका क्या कोई आगमिक आधार है? उनकी दृष्टि में इन प्रवृत्तियों का कोई आगमिक आधार नहीं है । कालान्तर में ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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