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________________ लोकाशाह और उनकी धर्मक्रान्ति १११ भिन्न-भिन्न हैं । सौराष्ट्र, उत्तर गुजरात और राजस्थान- इन तीन भिन्न क्षेत्रों में उनका जन्म माना जाता है। इन विभिन्न नगरों या क्षेत्रों में किसे सत्य माना जाये यह चिन्तनीय है । फिर भी, अधिकांश विद्वानों की यह मान्यता है कि उनका जन्म सिरोही के पास अरहट्टवाड़ा में हुआ था और वे व्यवसाय के निमित्त से अहमदाबाद आ गये थे । अत: हमारी दृष्टि में भी उनका जन्म- स्थान अरहट्टवाड़ा (सिरोही) मानना अधिक समुचित है। लोकाशाह के द्वारा आगम लेखन तथा लोकागच्छ के प्रवर्तन की तिथियों के विषय में भी अनेक मत देखने को मिलते हैं। किन्तु यह सत्य है कि लोकाशाह ज्ञानसागरसूरि (तपागच्छ, बृहद्पौशालिक शाखा) के यहाँ लेहिया का कार्य करते थे। कमलसंयम उपाध्याय ने 'सिद्धान्त सारोद्धार' में वि०सं० १५०८ में मूलसूत्रों के लेखन और साधु-निन्दा, जिन-प्रतिमा उत्थान आदि के रूप में लोकाशाह की धर्मक्रान्ति का उल्लेख किया है। इसी प्रकार हीरकलश कृत 'कुमति विध्वंसण चौपाई' (वि०सं० १६७८ ज्येष्ठ शुक्ला पूर्णिमा को रचित) में भी १५०८ में लोकाशाह के द्वारा जिन-प्रतिमा पूजा आदि के परिहार का उल्लेख किया गया है।२८ दिगम्बर ग्रन्थ 'भद्रबाहुचरित्र' में वि० सं० १५२७ में लोकामत के उत्पन्न होने का उल्लेख है।२९ इसी प्रकार दिगम्बर आचार्य सुमतिकीर्ति के द्वारा वि०सं० १६२७. में रचित 'लुकामतनिराकरण' नामक कृति में वि० सं० १५२७ में लोकामत की उत्पत्ति का उल्लेख है।३° श्री भंवरलाल नाहटा के अनुसार धर्मसागर उपाध्याय की वि०सं० १६२९ में लिखित 'प्रवचन परीक्षा एवं गुणविजयवाचक की 'लोकामतनिराकरणचौपाई' में लुंकामत का विस्तार से खण्डन किया गया है, किन्तु ब्रह्मक विरचित 'जिनप्रतिमा स्थापन' (वि०सं० १६६० में रचित) में अहमदाबाद नगर में वि० सं० १५३२ में लोकामत की स्थापना का उल्लेख है।३१ एकलपातरिया पोतियाबन्ध गच्छ की पट्टावली में वि० सं० १५३१ (वैशाख शुक्ला एकादशी, दिन गुरुवार) में लोकागच्छ की उत्पत्ति का निर्देश है।३२इसी पट्टावली में वि० सं० १५३१ वैशाख शुक्ला दिन गुरुवार को शाह रूपसी आदि ४५ लोगों की दीक्षा का भी उल्लेख है । हीरकलशकृत 'कुमति विध्वंसण चौपाई' में लखमसी आदि के द्वारा गुरु के बिना ही वि० सं० १५३४ में दीक्षा ग्रहण का उल्लेख है । एकलपातरिया गच्छ की ही एक अन्य पट्टावली में वि० सं० १५३१ के चैत्र मास की नवमी दिन बुधवार को दशवैकालिक लिखने का उल्लेख है ।आगे वि०सं० १५३६ में फाल्गुन कृष्णा सप्तमी दिन सोमवार को अग्रवाल जाति के सेठ रामजी के द्वारा बरहानपुर में दीक्षा लेने का उल्लेख है। बहुमत वि०सं० १५३१ तदनुसार ई०सन् १४७५ के पक्ष में है। लोकाशाह की दीक्षा के सम्बन्ध में नायकविजयजी के शिष्य कान्तिविजयजी द्वारा लिखित पन्नों में वि०सं० १५०९ में श्रावण शुक्ला एकादशी, दिन शुक्रवार को सुमतिविजयजी के पास लोकाशाह द्वारा यति दीक्षा लेने का उल्लेख है। यति श्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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