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________________ लोकाशाह और उनकी धर्मक्रान्ति १०९ 'धर्मवीर लोकाशाह' में, मुनि सुशीलकुमार जी ने अपने ग्रन्थ 'जैनधर्म का इतिहास में किया है । किन्तु इन दोनों ने ही इस मत के समर्थन में कोई प्राचीन प्रमाण नहीं दिया है । आचार्य हस्तीमलजी ने आचार्य क्षितिन्द्र मोहन सेन के एक पाँचवें मत का भी उल्लेख किया है । इस मत का उल्लेख मुनि सुशीलकुमार जी ने भी 'जैनधर्म का इतिहास' में किया है। इनके अनुसार लोकाशाह का जन्म वि०सं० १४८६ के अनन्तर हुआ, किन्तु क्षितिन्द्र मोहन सेन ने यह उल्लेख कहाँ पर किया है इसका सन्दर्भ दोनों ने ही नहीं दिया है । अत: वि०सं० १४७२ और वि० सं० १४८६ के मत के सन्दर्भ में प्रमाणों के अभाव में कुछ भी कहना सम्भव नहीं है । जहाँ तक वि० सं० १४७५ और १४८२ के मतों का प्रश्न है तो वि० सं० १४८२ का मत समीचीन नहीं लगता है, क्योंकि मनि सशील कुमार जी ने वि०सं० १४८७ में लोकाशाह के विवाह होने का उल्लेख किया है। यदि उनका जन्म वि० सं० १४८२ अथवा वि० सं० १४८६ माना जाता है तो ४ वर्ष की आयु में विवाह की कल्पना समचित नहीं है । यद्यपि उस समय बाल विवाह की परम्परा थी, फिर भी १२ या १५ वर्ष से पूर्व उनके विवाह की बात सामान्यतया स्वीकार करने योग्य नहीं मानी जा सकती, अत: इस अपेक्षा से उनका जन्म वि०सं० १४७५ में मानना उचित प्रतीत होता है । आचार्य हस्तीमलजी ने वि०सं० १४८२ की तिथि को लेखक की भूल मानकर उसे वि० सं० १४७२ मानने का संकेत किया है । यह ठीक है कि प्राचीन हस्तलिपि में ७ और ८ के लेखन में बहुत अधिक अन्तर नहीं होता था, अत: किसी रूप में १४७२ की तिथि को भी मान्य किया जा सकता है । यद्यपि इसका प्रमाण क्या है? यह कहना कठिन है ।। लोकाशाह की जाति के सम्बन्ध में भी दो प्रकार के मत उपलब्ध होते हैं । तपागच्छीय यति कान्तिविजयजी ने उन्हें ओसवाल जाति में उत्पन्न बताया है। लोकागच्छीय यति श्री भानुचन्द्रजी ने उन्हें दशा श्रीमाली बताया है।११ किन्तु इसके विपरीत मुनि श्री बीकाजी ने उन्हें प्राग्वाट वंश का कहा है।१२ 'प्राग्वाट-इतिहास' में भी उन्हें प्राग्वाट जाति का ही बताया गया है। १२ दिगम्बर भट्टारक सुमतिकीर्ति ने भी उन्हें प्राग्वाट वंश की लघुशाखा का माना है।" रत्ननन्दीजी ने 'भद्रबाह चरित्र' में भी लोकाशाह को दशा पोरवाल कुल में उत्पन्न लिखा है।१५ इन साहित्यिक साक्ष्यों में प्राग्वाट जाति के सम्बन्ध में सबसे अधिक प्रमाण उपलब्ध होते हैं । अत: लोकाशाह को प्राग्वाट (पोरवाल) जाति का मानना अधिक उचित लगता है। उनके जन्म-स्थान के सम्बन्ध में भी अनेक उल्लेख मिलते हैं । डॉ० तेजसिंह गौड़ ने उनका जन्म वि०सं० १४८२ में कार्तिक पूर्णिमा के दिन अहमदाबाद में होने का उल्लेख किया है, किन्तु यह उचित नहीं लगता है। वि०सं० १६०७ कार्तिक सदि त्रयोदशी को ब्रह्मक द्वारा रचित 'जिन-प्रतिमा स्थापन' नामक ग्रन्थ में लोकाशाह द्वारा वि०सं० Jain Education International . For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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