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________________ ८८ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास आर्य नागार्जुन ____ आर्य नागार्जुन का जन्म वी०नि० सं० ७९३ में ढंक नगर के क्षत्रिय श्री संग्रामसिंह के यहाँ हुआ । इनकी माता का नाम श्रीमती सुव्रता था। १४ वर्ष की अवस्था में वी०नि०सं० ८०७ में ये दीक्षित हुये। 'नन्दीसूत्र' स्थविरावली में आर्य नागार्जुन को आर्य हिमवन्त के पश्चात् आचार्य बताया गया है। जबकि युगप्रधान पट्टावली और दुषमाकाल श्रमणसंघ स्तोत्र में नागार्जुन को आर्य सिंहगिरि के पश्चात् युगप्रधानाचार्य माना गया है। किन्तु वाचनाचार्य और युगप्रधानाचार्य दोनों पट्टावली में आर्य नागार्जुन के नाम उपलब्ध होते हैं। इस सम्बन्ध में आचार्य हस्तीमलजी का मानना है कि वी०नि० सं० ८४० के लगभग वाचनाचार्य आर्य स्कन्दिल के स्वर्गस्थ होते ही ज्येष्ठ मुनि हिमवंत को वाचनाचार्य नियुक्त किया गया और हिमवंत के स्वर्ग गमनान्तर अन्य वाचनाचार्य के अभाव में नागार्जुन को ही युगप्रधानाचार्य के कार्यभार के साथ वाचनाचार्य का पद भी प्रदान कर दिया गया । ऐसा मानने पर आर्य स्कन्दिल, आर्य हिमवंत और आर्य नागार्जुन के समकालीन और वाचनाचार्य होने की समस्या सहज ही हल हो सकती है।" द्वादश वर्षीय दुष्काल के पश्चात् अवशेष श्रुत संकलन के उद्देश्य से आर्य स्कन्दिल के नेतृत्व में मथुरा में श्रमण सम्मेलन हुआ । इस सम्मेलन में श्रमणों की स्मृति के आधार पर आगम पाठों को व्यस्थित रूप में संकलित किया गया । इस सम्मेलन का समय वी०नि०सं० ८२७ से ८४० के मध्य माना जाता है। ठीक इसी समय या इसके आस-पास आर्य नागार्जुन के नेतृत्व में बल्लभी में भी आगम वाचना हुई। इसे वल्लभी वाचना या नागार्जुनीय वाचना के नाम से भी जाना जाता है। आर्य नागार्जुन का सम्पूर्ण जीवन १११ वर्ष का था जिसमें वे १४ वर्ष तक गृहस्थ के रूप में, १९ वर्ष तक सामान्य साधु-पर्याय में और ७८ वर्ष तक आचार्य पद पर समासीन रहे। वी०नि०सं० ९०४ में इनका स्वर्गवास हो गया । आर्य भूतदिन __ आर्य नागार्जुन के पश्चात् आर्य भूतदिन युगप्रधानाचार्य पद पर आसीन हये । ये आर्य नागार्जुन के शिष्य माने गये हैं। यद्यपि इनके जीवन के विषय में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। 'नन्दीसूत्र' स्थविरावली में इनका नाम वाचनाचार्य के रूप में है जबकि दुषमाकाल श्रमण संघ स्तोत्र में इनका नाम युग प्रधानाचार्य पट्टावली में है। इनका जन्म वी०नि०सं० ८६४ में हुआ । वी०नि०सं० ८८२ में दीक्षित हुये, वी०नि० सं० ९०४ में युगप्रधानाचार्य पद पर समासीन हुये और वी०नि०सं० ९८३ में स्वर्गस्थ हुये। इस प्रकार ११९ वर्ष की पूर्ण आयु में से ये १८ वर्ष गृहवास में रहे, २२ वर्ष तक सामान्य साधुवय में व्यतीत किया और ७९ वर्ष युग प्रधानाचार्य के रूप में जिनशासन की सेवा की। ज्ञातव्य है कि नागार्जुन और आर्य भूतदिन की आयु मर्यादा एवं आचार्यत्व काल को लेकर विद्वानों में मतभेद है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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