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________________ समुद्र, ये विविध ऋतुक्रम, द्रुम-अंकुर, पुष्पपल्लव-फल और लताओं का यह वानस्पतिक वैभव वास्तव में क्या है? किसने इन सबको रचा, इसका कौन संचालक है? ऐसे विविध सहस्रः रहस्यात्मक प्रश्नचिह्न मानवमन में उद्भूत होते रहे हैं। इन्द्रभूति गौतम इसी जिज्ञासा वृत्ति के प्रतिनिधि बनकर ही भगवान महावीर के समक्ष उपस्थित हुए थे। विशेषावश्यकभाष्य में आत्मा के अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए महावीर और गौतम के नाम से इसी संवाद को प्रस्तुत किया गया है अग्रिम पृष्ठों में मैं उसे प्रस्तुत कर रही हूं। इन्द्रभूति गौतम की आत्मा के अस्तित्व विषयक शंकाएँ इन्द्रभूति गौतम के मन में यह संदेह था कि जीव (आत्मा) किसी भी प्रमाण से सिद्ध नहीं होता है या नहीं? उनकी इस शंकारूपी बीज का विशेषावश्यक भाष्य के सामायिक द्वार के गणधरवाद में दार्शनिक दृष्टि से उठाया गया हैं, उनकी शंकाएं निम्नानुसार हैं :जीव प्रत्यक्ष नहीं हैं- आत्मा का जब अस्तित्व है तब वह तत्वपत्र-पुष्प और पादप सदृश्य प्रत्यक्षतः दृष्टिगत होना चाहिए, किन्तु जीव प्रत्यक्ष स्वरूप नहीं है एतदर्थ उसका अस्तित्व आकाश-कुसुम के सदृश्य सर्वथा रूपेण अभाव रूप है। यद्यपि ‘परमाणु' भी चर्म-चक्षुओं से दृष्टिगोचर नहीं है, किन्तु वह जीव को संपूर्ण रूप से अप्रत्यक्ष नहीं है। कार्यरूप में परिणत परमाणु का प्रत्यक्ष अवश्य हैं, किन्तु जीव का तो कभी भी साक्षात्कार नहीं हो पाता। अतः जीव का सर्वथा अभाव मानना चाहिए।' अनुमान से भी जीव का अस्तित्व सिद्ध नहीं- अनुमान प्रमाण भी प्रत्यक्ष के साथ होता है। जिस पदार्थ का कदापि प्रत्यक्ष नहीं हुआ है ऐसी स्थिति में वह पदार्थ अनुमान से भी नहीं जाना जा सकता। धूम और अग्नि धूम को पूर्व में देखा होता है तभी उसका सहज स्मरण रहता है। धूऐ को देखते ही अग्नि का अनुमान किया जाता है। पर यहां जीव के किसी भी लिंग (हेतु) का लिंगी (साध्य) जीव के साथ संबंध पूर्वगृहीत नहीं है जीवो तुह संदेहो, पच्चक्खं जण्णधेप्पति घड़ो व्व। अच्चंता पच्चंक्खं च, णस्थि लोए खपुकं व।। विशेषावश्यकभाष्य गाथा 1545 79 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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