SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ “यो मे आत्मा या गे प्रजा ये मे पशवस्तैरहं मनोवाचं प्रसीदामि।" उपनिषदों में आत्मा के अस्तित्व सूचक प्रमाण है “एष हि दृष्टा, स्प्रष्टा, श्रोता, घ्राता, रसयिता, मन्ता, बोद्धा, कर्ता विज्ञानात्मा पुरुषः ।। स परेऽक्षरे आत्मनि सम्प्रतिष्ठते।" कठोपनिषद में- इन्द्रियेभ्यः परा ह्या अर्थेभ्यश्च परं मनः । मनसस्तु परा बुद्धि-बुद्धेरात्मा महान पर।। ऐतरेयोपनिषद में- “सोऽस्यात्मात्मा पुण्येभ्यः कर्मभ्यः प्रतिधीयते ऽथास्याऽयमितर आत्मा कृतकृत्यो वयोगतः प्रैति स इतः प्रत्यन्नैव पुनर्जायते।। भगवद्गीता में- “न जायते म्रियते वा कदाचि - न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः" अजो नित्यः शाश्वतोऽ पुराणो, न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।। इस प्रकार वैदिक साहित्य में आत्मा के अस्तित्व के पक्ष और विपक्ष दोनों सम्बन्धी सन्दर्भ देखकर गौतम के मन में यह शंका उठना स्वाभाविक था कि आत्मा की सत्ता है या नहीं? ___ इन्द्रभूति गौतम इसी शंका को लेकर महावीर के समक्ष उपस्थित हुए थे। आचारांग में इसका संकेत मिलता है। आचारांग सूत्र के प्रथम अध्ययन में यही जिज्ञासा प्रस्तुत की गई है - के अहं आसी? “मैं” कौन था? यह पद आत्मा सम्बन्धी शंका का सूचक है। धर्म और दर्शन का उद्गम आत्मा जिज्ञासा से हुआ है। इसी प्रकार उपनिषदों का आरम्भ भी आत्मा की जिज्ञासा से हुआ, जब नचिकेता यम के समक्ष आत्मतत्व को जानने की उत्सुकता प्रकट करता है तब यम उसको आत्मतत्व का रहस्य बतलाते है। मानव की इस सहज जिज्ञासा प्रवृत्ति का उल्लेख ऋग्वेद में भी प्राप्त है। इस विषय में यह कहा जा सकता है कि यह चेतन तत्व ही है जो “मैं” को लक्ष्य में रखकर अभिव्यक्त होता रहा है। यह विश्व भी बहुविध विचित्रताओं से आपूरित है। यह धरती, ये 'ताण्ड्य महाब्राह्मण 1/3/4 2 प्रश्नोपनिषद 4/9 'कठोपनिषद 5/3/10 ऐतरेयोपनिषद 214 गीता 2/2 आचारांग सूत्र, प्रथम अध्ययन (ब्यावर) सूत्र 1. 78 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy