SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 16-17 कुत्र द्वार में सामायिक के विभिन्न द्वारों पर चर्चा की है तथा केषु द्वार में सामायिक किन द्रव्यों और पर्यायों में होती है, इस पर विशेष स्पष्टीकरण किया है। 18-19 कथं द्वार में सामायिक का काल कितना है, इस पर चिन्तन किया है तथा सम्यक्त्व और श्रुत की सामायिक की उत्कृष्ट स्थिति 66 सागरोपम है, जबकि देशविरति और सर्वविरति की पूर्वकोटि देशोन है। इसी तरह 'कति' द्वार भी है। 20. सान्तरद्वार में एक बार सामायिक से च्युत होने पर पुनः कब प्राप्त होती है, उस अन्तर को बताया है। 21-23 अविरहित द्वार में अविरह काल का निरुपण है। भव द्वार में कौनसे सामायिकधारी कितने भव करते हैं, यह बतलाया है। प्रथम बार अथवा छोड़े हुए का पुनर्ग्रहण कितनी बार होता है, यह आकर्ष द्वार में वर्णित है। सम्यक्त्व सामायिकयुक्त प्राणी सम्पूर्ण लोक का स्पर्श करता हैं, इस तरह स्पर्शनद्वार में विविध प्रकार से स्पर्शना का वर्णन है। 24. अन्तिम द्वार का नाम निरूक्ति है, जिसमें प्रत्येक सामायिक के प्रकारों पर चिन्तन किया है जिसमें सिद्ध भगवान का सुख व सिद्धिगमन क्रिया का विस्तृत वर्णन है। इसके पश्चात 'करेमिभन्ते' आदि सामायिक के मूल पदों पर विचार किया गया है। प्रस्तुत ग्रन्थ का सामग्री पटल जहाँ व्यापक है, विराट है, वहीं जैनविद्या से संदर्भित सक्षम पहलुओं का भी अन्तर्भाव इस रुप में रुपायित है कि जिससे ग्रन्थ का मनिषी आचार्य की तार्किक क्षमता, बौद्धिक कुशाग्रता, प्रत्युग्र प्रतिभा की अपरिमित तेजस्विता प्रतिपादन-प्रवणता पर अभिव्यक्ति की पारंगतता पदे-पदे परिदृश्यमान है, परिलक्षित है। एतदर्थ यह वह ग्रन्थ है जिससे हम बहुविध विवक्षाओं के आधार पर शीर्षस्थ ग्रन्थ किं वा ग्रन्थ – गौरव के रूप में प्रतिष्ठित करते हुए धन्यता की अनुभूति करते हैं। ' जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग 3, डा. मोहनलाल मेहता, वही, पृ. 15-17 56 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy