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________________ (1) इन्द्रभूति : (2) अग्निभूति : (3) वायूभूति ( 4 ) व्यक्तजी (5) सुधर्माजी : (6) मण्डिकजी : (7) मौर्यपुत्रजी : ( 8 ) अंकपिता 11. 12. (9) अचलभ्राताजी : (10) मैतार्यजी : ( 11 ) प्रभासजी : 13. 14. : 15. : : आत्मा का अस्तित्व कर्म की सत्ता पर शंका आत्म-शरीर का सम्बन्ध शून्यवाद व भूतवाद निरसन इहलोक और परलोक की समानता - विचित्रता बन्ध - मोक्ष का अस्तित्व देवों का अस्तित्व नारकों का अस्तित्व पुण्य-पाप का स्वतंत्र अस्तित्व परलोक का अस्तित्व है या नहीं? निर्वाण की सिद्धि पर शंका ? ग्यारहवें समवतार द्वार में आचार्यजी ने चरणकरणानुयोग, धर्मकथानुयोग, गणितानुयोग और द्रव्यानुयोग के पृथक्करण की चर्चा की है, यह सब वर्गीकरण आचार्य आर्यरक्षित ने किया, तत्पश्चात उन्होंने पुष्पमित्र को आचार्य का महत्वपूर्ण पद प्रदान किया, जिसे गोष्ठामाहिल ने अपना अपमान समझा और संघ से पृथक होकर नई मान्यताओं का प्रचार प्रारम्भ किया । यही गोष्ठामाहिल सातवें निनव के रूप में प्रसिद्ध हुआ । इसी तरह जमालि, तिष्यगुप्त, आषाढ़भूति, अश्वमित्र, गंग, रोहगुप्त, गोष्ठामाहिल इन निह्नवों का वर्णन किया है। Jain Education International बाहरवें द्वार का नाम अनुमत है निश्चय नय और व्यवहार नय की दृष्टि से कौनसी सामायिक मोक्षमार्ग का कारण है? इसका विचार करना, अनुमत है। - किं द्वार में सामायिक क्या है? जीव है अथवा अजीव? विस्तृत रूप से सामायिक द्रव्य अथवा गुण है, इस पर विवेचन किया है। चौदहवें कतिविध द्वार में सामायिक तीन प्रकार की बतायी है सामायिक, श्रुत- सामायिक और चारित्र - सामायिक | - कस्य द्वार में सामायिक कौन कर सकता है जो आत्मा, संयम, नियम तथा तप में स्थित है, वही कर सकता है। इसका विवरण है। 55 For Private & Personal Use Only सम्यक्त्व www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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