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________________ 5-6 ज्ञानों का विश्लेषण किया है कि पांच ज्ञानों में मति और श्रुत ये दो ज्ञान परोक्ष हैं और अवधि, मनः पर्यव और केवल ये तीन ज्ञान प्रत्यक्ष हैं । पंचज्ञान की चर्चा करने के पश्चात् चतुर्थद्वार समुदयार्थ द्वार प्रारम्भ किया है मति-अवधि, मनःपर्यव और केवलज्ञान परबोध में समर्थ है अतः उसका अनुयोग अर्थात श्रुतज्ञान का सविस्तृत रूप से विवेचन किया है। नामनिक्षेप की दृष्टि से 'आवश्यक' के सम्बन्ध में चिन्तन किया है । पंचम द्वार में सामायिक नामक प्रथम अध्ययन की विशेष व्याख्या है, जिस प्रकार 'आकाश' सब द्रव्यों का आधार है, उसी प्रकार सामायिक सर्व गुणों का आधार है। किसी महानगर में प्रवेश करने के लिए अनेक द्वार होते हैं, वैसे ही सामायिक अध्ययन के उपक्रम, निक्षेप, अनुगम और नय ये चार द्वार हैं। षष्ठम द्वार में भेद-प्रभेद प्रतिपादित हुए हैं। इसके पश्चात उपोद्घात है तीर्थंकरों व गणधरों को नमस्कार करके तीर्थ की परिभाषा प्रस्तुत की है। (निर्युक्ति की परिभाषा कर सूत्र के निश्चित अर्थ की व्याख्या करना नियुक्ति है ) । सामायिक का महत्व व लाभ बताते हुए कहा है कि सामायिक के द्वारा आयुष्य कर्म को छोड़कर शेष सात कर्म प्रकृतियों की स्थिति न्यून हो जाती है। 7-8-9 कषाय के उपशम और क्षय की प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए भाष्यकर ने उपमश्रेणी और क्षपकश्रेणी का स्वरूप वर्णन किया है। 10. - - सामायिक चारित्र का उद्देश्य, निर्देश, निर्गम क्षेत्र, काल पुरुष, कारण प्रत्यय, लक्षण, नय, समवतार, अनुमत, किम् कतिविधि, कस्य, कुत्र केषु कथम, कियच्चिर, कति, सान्तर, अविराहित, भव, आकर्ष, स्पर्शन और निरूक्ति इन 26 द्वारों से वर्णन किया है । Jain Education International - दसवें निर्गम द्वार में सामायिक की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विचार करते हुए आचार्य ने भगवान महावीर के ग्यारह गणधरों की चर्चा की है। ग्यारह गणधर, जिन्होंने महाप्रभु महावीर से अपनी-अपनी शंकाओं का निरसन किया और एक ही दिन में उनके श्रीचरणों में अपने शिष्यों के साथ दीक्षित हो गये I उन एकादश विद्वानों के नाम तथा शंकाओं की विषय-वस्तु इस प्रकार है 54 For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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