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________________ जैन आगमों में आवश्यकसूत्र की सर्वप्रथम प्राकृत गद्य व्याख्या अनुयोगद्वारसूत्र के रूप में प्राप्त होती है। वह आवश्यकसूत्र की व्याख्या का ही एक रूप है। आचार्य श्री भद्रबाहु स्वामी ने आगमों पर जो नियुक्तियां निर्मित की हैं, उनमें आवश्यकसूत्र की नियुक्ति का विशिष्ट स्थान है। आवश्यकसूत्र के छ: अध्ययन हैं, उनमें प्रथम अध्ययन ‘सामायिक' है। आचार्य श्री भद्रबाहुस्वामी के मतानुसार “सामायिक” समग्र श्रुतज्ञान का मूल है और समग्र श्रुतज्ञान का सार चारित्र में और चारित्र का सार मोक्ष में निहित है।' सामायिक में समता की प्रधानता है और समता आत्मस्थिरता है और आत्म-भाव में स्थिर रहना ही चारित्र है। आत्म-स्थिरता रूप चारित्र सिद्धों में भी होता है, किन्तु सिद्धों में क्रियात्मकरूप चारित्र नहीं है, वहाँ निश्चय चारित्र है। आवश्यक का यह प्रथम भेद यथार्थ अर्थ में क्षीर-समुद्र है, जो इसमें स्नान कर लेता है, वह श्रावक भी श्रमण के सदृश्य हो जाता है, इसके समक्ष विराट विश्व की सम्पदा भी हेय है, तुच्छ है और नगण्य है। भगवान महावीर ने केवलज्ञान होने पर सर्वप्रथम अर्थतः उपदेश सामायिक का ही दिया, गणधरों ने भी अपनी शंकाओं के निरसन के पश्चात् सर्वप्रथम सामायिक चारित्र को आत्मसात किया। इस प्रकार ज्ञान और चारित्र में सामायिक को प्राथमिकता दी गई है। सामायिक की इस अपूर्व महत्ता और अनुपम मूल्यवत्ता को सलक्ष्य में रखकर जैन परम्परा के मनिषी आचार्य श्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने आवश्यक सूत्र में प्रतिपादित सामायिक अध्ययन और उसकी नियुक्ति को लक्षित कर विशेष्यावश्यकभाष्य नामक एक अलौकिक बृहदाकार ग्रन्थ शिरोमणि की प्राकृत भाषा में पद्यात्मक शैली में संरचना की। आचार्य जिनभद्रगणि ने विशेषावश्यकभाष्य की संरचना जैनागमों के मन्तव्यों को अकाट्य तर्क की कसौटी पर कसा है और इसमें तत्कालिन तार्किकों की सप्राण जिज्ञासा को प्रशान्त किया है। जिस प्रकार वेद वाक्यों के तात्पर्य के अनुसन्धान के लिए मीमांसा-दर्शन की रचना हुई, उसी प्रकार जैनागमों के अभिप्राय को प्रकट करने के लिए जैन-मीमांसा के रूप में आचार्य जिनभद्रगणि ने विशेषावश्यक भाष्य की अमर रचना की। ' आवश्यकनियुक्ति, भद्रबाहुस्वामी, गाथा 93 50 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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