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विरति के लिए 1
गों का आश्रय लिया जाना चाहिये। आचार का स्वरूप एवं आत्मशुद्धि की प्रक्रिया का निरूपण भी किया गया है। शौरसेनी आगमों का व्याख्यासाहित्य -
___ शौरसेनी आगमग्रन्थों पर भी महत्वपूर्ण टीकाएँ संस्कृत-मिश्रित प्राकृत भाषा में निर्मित हुई हैं। विषयानुक्रम और विस्तार की दृष्टि से ये टीकाएं स्वतंत्र ग्रन्थ के रूप में अपना स्थान रखती है। धवलाटीका -
षट्खण्डागम पर निर्मित यह सबसे महत्वपूर्ण टीका है। टीका के रचयिता आचार्य वीरसेन हैं।' यह टीका दो भागों में विभक्त है। (1) वीरसेनाचार्य द्वारा निर्मित प्राकृत-संस्कृत मिश्रित भाग, तथा (2) टीका में उद्धृत प्राचीन पद्यमय उद्धरण। यह टीका 72 हजार श्लोक परिमाण से परिपूर्ण है। इस ग्रंथ की कतिपय विशेषताएं निम्नानुसार हैं
षट्खण्डागम के सूत्रों का मर्मोद्घाटन करने के साथ कर्म सिद्धान्त का विस्तार से निरूपण किया है। दर्शनशास्त्र की अनेक मौलिक मान्यताओं का समावेश हुआ है। लोक के स्वरूप विवेचन में नवीन दृष्टिकोण की स्थापना की गई है। अन्तर्मुहूर्त के सम्बन्ध में नवीन मान्यता दी गई है। सम्यक्त्व के स्वरूप का विवेचन है। सम्यक्त्वोन्मुख जीव के परिणामों की वृद्धिन्गत विशुद्धि और उसके द्वारा शुभ प्रकृतियों का क्रमशः बन्धविच्छेद, सत्वविच्छेद, उदयविच्छेद का विवेचन है। आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेदनी और निवेदनी धर्म-कथाओं के स्वरूप का विश्लेषण किया गया है। गुणस्थान का विवेचन किया गया है।
विषयों की बहुलता एवं काव्यशास्त्रीय तर्कप्रधानशैली के कारण यह ग्रन्थराज विश्वकोष के समान अद्वितीय है।
प्राकृतभाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, वही, पृ. 216-217
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