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आचार्य नेमिचन्द्र का साहित्य
आचार्य नेमिचन्द्र अत्यधिक प्रभावशाली और सिद्धान्तशास्त्र के विशिष्ट मर्मज्ञ विद्वान् थे। इसी विशेषता के कारण उन्हें सिद्धान्तचक्रवर्ती की उपाधि से अलंकृत किया था । इनकी निम्नलिखित रचनाएँ प्रसिद्ध हैं ।
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गोम्मटसार
यह दो भागों में विभक्त है
(1) जीवकाण्ड, तथा ( 2 ) कर्मकाण्ड | जीव काण्ड में जीव की अनेक अवस्थाओं का प्रतिपादन किया गया है यथा प्राण, पर्याप्ति, संज्ञा, लेश्या - गुणस्थान आदि तथा कर्मकाण्ड में कर्म की विभिन्न अवस्थाओं का निरूपण किया गया है।
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क्षपणासार
द्रव्यसंग्रह
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त्रिलोकसार इस ग्रन्थ में करणानुयोग का वर्णन है। इसमें सामान्य लोक, भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष और नर- तिर्यकलोक का वर्णन है । देव - मनुष्य - तिर्यंच व अधोलोक में रहने के स्थान, उनकी आयु तथा परिवार का विस्तृत विवेचन है। इस ग्रन्थ में त्रिलोक की रचना सम्बन्धी ज्ञातव्य विषय है ।
लब्धिसार - आत्मशुद्धि के लिए पंचलब्धि आवश्यक हैं, उनमें से करण - लब्धि की प्रधानता है, इसके प्राप्त होने पर जीव को मिथ्यात्व से सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है। इसके तीन अधिकार हैं (1) दर्शनलब्धि (2) चरित्रलब्धि (3) क्षायिकलब्धि । इन तीनों अधिकारों में आत्मा की शुद्धि रूप लब्धियों को प्राप्त करने की विधि के सम्बन्ध में चिन्तन किया है।
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इस ग्रंथ में कर्मों को क्षय करने की विधि का निरूपण किया है।
यह ग्रन्थ बहुत उपयोगी ग्रन्थ है । समस्त विषय को
जीवाधिकार, सप्तपदार्थनिरूपणाधिकार, मोक्षमार्गाधिकार इन तीन अधिकारों में विभक्त कर दिया गया है । द्रव्य, अस्तिकायों और तत्वों को संक्षेप में समझने के लिए यह ग्रन्थ विशेषतः उपयोगी है।
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कार्तिकेयानुप्रेक्षा
इसके रचयिता स्वामी कार्तिकेय हैं। इस ग्रन्थ में 'अध्रुव, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचित्व, आश्रव-संवर, निर्जरा, लोक, बोधिदुर्लभ और धर्म इन बारह अनुप्रक्षाओं पर विस्तार से चिन्तन किया गया है। प्रसंगवश सात तत्वों का दान के भेद व विधियों का वर्णन है। अनुप्रेक्षा का अर्थ है, बार-बार वैराग्यमूलक चिन्तन करना । सांसारिक भावों से
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