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________________ शिवार्य की भगवती आराधना - इस ग्रन्थ के रचयिता आचार्य शिवार्य हैं। इसे आराहणा अथवा 'मूलाराहणा' भी कहते हैं। यह आठ परिच्छेदों में विभक्त है। इसमें सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप इन चार आराधनाओं का निरूपण है। यह ग्रन्थ मुख्यतया मुनिधर्म का प्रतिपादन करता है।' प्रस्तुत ग्रन्थ में मरण के विविध भेदों का वर्णन है, जिसमें पण्डितमरण को श्रेष्ठ बताया गया है। भावनाधिकार में तपोभावना, श्रुतभावना, सत्य व धृतिबलभावना का निरूपण है। आर्यिकाओं के संघ में रहने के अनेक नियमों का प्रतिपादन किया है। मार्गणा अधिकार के आचार-जीतकल्प का उल्लेख है। कहा गया है कि बाह्य-आचरण के साथ-साथ जो अन्तरंग आचरण को विशुद्ध नहीं रखता है वह बगुले के समान है। इस प्रकार इस ग्रन्थ में पण्डितमरण की प्राप्ति के लिए की जाने वाली आराधना का सुन्दर निरूपण है। 'अपराजिताचार्य' ने इस ग्रन्थ पर विजयोदया टीका की रचना की है तथा पं. आशाधर ने "मूलाराधनादर्पण” नामक टीका की रचना की है। वट्टकेर का मूलाचार - मूलाचार ग्रन्थ के रचयिता आचार्य वट्टकेर हैं। वट्टकेर जिसका शाब्दिक अर्थ वह व्यक्ति जिसकी वाणी समाज को सदाचार एवं सन्मार्ग में प्रवृत्त कर देती है। मूलाचार में मुनियों के आचार का निरूपण है। इसकी अनेक गाथाएँ आवश्यक नियुक्ति, पिण्डनियुक्ति, भत्तपइण्णा और मरणसमाधि आदि श्वेताम्बर ग्रन्थों में मिलती है। इस ग्रन्थ में 12 अधिकार और 1252 गाथाएँ हैं। - इसमें श्रमणों की आचार संहिता का सुव्यवस्थित, सुविस्तृत एवं सर्वांगीण विवेचन किया गया है, जिससे मुनि, दीक्षा-धारण के मूल उद्देश्य को प्राप्त करें। यह ग्रन्थ आगमिक विषयों को समझने और विशेषतः मुनियों के आचार को जानने के लिए अतिशय उपयोगी है। ' जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग 4, वहीं, पृ. 282 प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, वही, पृ. 232 46 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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