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________________ पंचास्तिकाय - प्रस्तुत ग्रन्थ में जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश इन पांच अस्तिकायों का निरूपण होने से इसका नाम 'पंचास्तिकाय' है।' यह ग्रन्थ दो अधिकारों में विभक्त है - प्रथम अधिकार में द्रव्य-गुण-पर्यायों पर चिन्तन है। द्वितीय अधिकार में सप्त पदार्थों का वर्णन कर मोक्ष मार्ग में जाने के लिए ज्ञान-दर्शन चारित्र रूप साधनों को प्रकाश मान किया है तथा व्यवहार और निश्चयनय की अपेक्षा से मोक्ष के सम्बन्ध में विचारणा की गई है। इस तरह यह कृति द्रव्यों के स्वरूप को समझने के लिए अतिशय उपयोगी है। इस ग्रन्थ पर अमृतचन्द्र, जयषेण, ज्ञानचन्द्र, ब्रह्मदेव और मल्लिषेण जैसे मनीषि विद्वानों ने टीकाएँ लिखी हैं कि बहुना, इससे भी ग्रन्थ की महत्ता स्वतः ही सुस्पष्ट है। नियमसार - ____ जो कार्य नियमतः किया जाना चाहिए, वह नियम कहलाता है। वह नियम ज्ञान-दर्शन और चारित्र स्वरूप है। इसमें 'परमात्म' तत्व का अवलम्बन लेने का उपदेश दिया गया है। एतदर्थ इसका नामकरण 'नियमसार' है। इस ग्रन्थ में सम्यकज्ञान और सम्यकदर्शन के विषयभूत आप्त, आगम और तत्व पर चिन्तन करते हुए जीवादि छह द्रव्यों का वर्णन किया गया है। प्रसंगानुसार पंच महाव्रत, पांच समिति, तीन गुप्ति, रूप व्यवहार चारित्र का भी निरूपण कर परमेष्ठी पदों पर चिन्तन किया है। आत्मशोधन की दृष्टि से प्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान, आलोचना, प्रायश्चित आदि की विचारणा करते हुए शुद्ध आत्मा के सम्बन्ध में सविस्तृत विवेचन है। इस ग्रन्थ पर पद्मप्रभ मल्लधारी ने टीका की संरचना की है। अष्टपाहुड़ अष्टपाहुड़ कुन्दकुन्दाचार्य द्वारा रचित महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। जैसा कि इसके नाम से परिस्पष्ट है, यह ग्रंथ निम्न आठ प्राभृतों में निबद्ध है। । जैनागम साहित्य मनन और मीमांसा, वही, पृ. 583 जैन साहित्य का वृहद् इतिहास, भाग 4, पृ. 154 44 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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