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ज्ञानाधिकार में आत्मा और ज्ञान का अन्यत्व, सर्वज्ञ की सिद्धि, इन्द्रियअतीन्द्रियसुख, शुभ-अशुभ और शुद्धोपयोग की महत्ता तथा इन्द्रिय जन्य सुख की हेयता को विशेष रूप से बतलाते हुए मोह क्षय करने की हृदयस्पर्शिनी प्रक्रिया बतलाई है । '
ज्ञेयाधिकार में द्रव्य - गुण - पर्याय का स्वरूप, सप्तभंगी, चेतना के प्रकार का स्वरूप निर्दिष्ट करते हुए जीव का लक्षण, कर्म और जीव का सम्बन्ध बताया है।
चरणाधिकार में श्रामण्य के चिन्ह, श्रमणों के 28 गुण व अन्तरंग - बहिरंग छेद, मुनि का आचरण आदि अनेक विषयों को युक्तिपूर्वक बतलाया गया है।
इस प्रकार यह ग्रन्थ आत्मद्रव्य, अन्यद्रव्यों से उसका भेद एवं चरणानुयोग का यथार्थ स्वरूप समझने में साधन है ।
समयसार
"समयसार " आचार्य कुन्दकुन्द का सर्वोत्कृष्ट आध्यात्मिक ग्रन्थ है । जिस ग्रन्थ में समस्त पदार्थों का अथवा आत्मा का सार वर्णित हो, वह "समयसार" है। इसमें भेद-विज्ञान का निरूपण हुआ है। समय दो प्रकार का है स्वसमय और परसमय। जो जीव रत्नत्रय में स्थित है वह स्वसमय और जो पौद्गलिक कर्मजन्य भावों में स्थित है वह परसमय है। यह ग्रन्थ 10 अधिकारों में विभाजित है
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प्रथम जीवाधिकार में शरीर से भिन्न आत्मा की स्वतंत्र स्थिति निरूपित है निश्चय नय से आत्मा ज्ञान-दर्शनमय अरूपी है, यह सब संसर्ग पुद्गल जन्य है ।
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द्वितीय अजीवाधिकार में अजीव का स्वरूप व जीव-अजीव का वर्गीकरण किया है। आगामी अधिकारों में आश्रव - बन्ध, संवर- निर्जरा और मोक्ष का क्रमशः विवेचन किया है। दसवाँ अधिकार सबका निचोड़ रूप है, इसमें जीव को ज्ञानयुक्त मानते हुए लिंग और वेश को सर्वोपरि नहीं मानकर कर्मों का आवरण हटने पर वह शुद्ध चैतन्ययुक्त बन जाता है, यह प्रतिपादित है ।
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शास्त्री, कैलाशचन्द्र जी, जैनसाहित्य का इतिहास, पृ. 220-221
2 जैनागम साहित्य मनन और मीमांसा, आ. देवेन्द्रमुनि, पृ. 581
इस प्रकार कुन्दकुन्दाचार्य ने अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर आत्मा के शुद्ध स्वरूप को उजागर किया है।
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