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ही विवेचन है, मोहनीय कर्म की सत्ता बन्ध, उदय, उदीरणा, संक्रमण आदि का विशद वर्णन है।
इस लोक में सूक्ष्मतम कर्मपुद्गल परमाणु आपूरित हैं, वे इस जीव की कायिक, वाचिक या मानसिक प्रवृत्ति से आकृष्ट होकर कषाय से आत्मा से बद्ध हो जाते हैं। इस प्रकार कर्म से कषाय और कषाय से कर्मबन्ध की यह परम्परा अनादि है।
इस ग्रन्थ के षोडष अधिकार हैं, 8 अधिकारों में संसार के कारणभूत मोहनीय कर्म का विभिन्न दृष्टियों से विवेचन और अन्तिम अष्ट अधिकारों में आत्म परिणामों के शिथिलीकरण मोहनीय कर्म की विविध दशाओं का निरूपण भी है। कुन्दकुन्दाचार्य का साहित्य -
जैन आगम-साहित्य को चार भागों में बांटा गया है - द्रव्यानुयोग, चरणकरणानुयोग, गणितानुयोग, धर्मकथानुयोग। जिसमें जीव-अजीव, पुण्य-पाप आदि तत्वों का कथन हो, उसे द्रव्यानुयोग कहते हैं। जैसे दिगम्बर परम्परा में चरणानुयोग विषयक साहित्य को रचने का आद्य श्रेय आचार्य गुणधर तथा भूतबलि-पुष्पदन्त को प्राप्त है, वैसे ही द्रव्यानुयोग विषयक साहित्य की रचना करने का श्रेय कुन्दकुन्दाचार्य को प्राप्त है।
दिगम्बर परम्परा में भगवान महावीर और गौतम गणधर के पश्चात् उनका नाम विशेष आदर से लिया जाता है। कौण्डकुन्दपुर में जन्मे कुन्दकुन्द का नाम पद्मनन्दि था, उन्होंने संयम लेकर विशिष्ट साधना की, तत्पश्चात् श्रुतदेवता की आराधना कर महत्वपूर्ण आध्यात्मिक ग्रन्थों की रचना की। उनके ग्रन्थों का संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है -
प्रवचनसार -
प्रस्तुत ग्रन्थ के तीन अधिकार हैं जिनमें ज्ञानतत्व, ज्ञेयतत्व और चरणतत्व का वर्णन है।
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