________________
पू. आचार्य आत्मारामजी म. ने आचारांग, अनुत्तरोपपातिक, उत्तराध्ययन, स्थानांग, अन्तकृतदशांग, अनुयोगद्वार प्रभृति आगमों पर हिन्दी में विस्तार से विवेचन लिखा है जो सरल, सुगम व आगम रसिकों को आगम के मर्म को समझाने में अतीव उपयोगी है। पू. श्री हस्तीमल जी मा.सा. ने दशवैकालिक, नन्दी, प्रश्न-व्याकरण आदि आगमों पर हिन्दी अनुवाद किये। प्रसिद्ध वक्ता श्री सौभाग्यमुनिजी ने आचारांग का, ज्ञानमुनिजी ने विपाकसूत्र का, उपा. कन्हैयालालजी मा. 'कमल' ने ठाणांग व समवायांग का, अनुवाद व विवेचन आधुनिक भाव, भाषा व शैली में किये हैं। मुनि कन्हैयालाल जी मा. ने आगम साहित्य को चार अनुयोगों में पृथक्करण करके महत्त्वपूर्ण कार्य किया। आ. देवेन्द्रमुनि जी कल्पसूत्र पर शोधप्रधान विवेचन लिखा। आ. महाप्रज्ञ (नथमलमुनि) ने कई आगमों का अनुवाद तथा समीक्षात्मक विवेचन लिखा।' शौरसेनी साहित्य -
भगवान महावीर ने तत्कालीन लोकभाषा अर्धमागधी को अपने उपदेशों का माध्यम बनाया था, जिससे गौतम गणधर द्वारा गुंफित द्वादशांगी की भाषा भी अर्धमागधी थी। तत्पश्चात् महाराष्ट्री और शौरसेनी भाषाएँ, जो प्राकृत के ही भेद हैं, उन भाषाओं में जैनाचार्यों ने साहित्य की संरचना की।
श्वेताम्बर आगम साहित्य जहाँ अर्धमागधी प्राकृत में है वहीं दिगम्बर परंपरा के जैनागम शौरसेनी प्राकृत भाषा में निबद्ध हैं। दिगम्बर मान्यतानुसार द्वादशांगी का विच्छेद हो गया, केवल दृष्टिवाद का कुछ अंश अवशेष रहा है, जो वर्तमान में षटखण्डागम के रूप में विद्यमान है।
षट्खण्डागम -
__ “षट्खण्डागम” आचार्य पुष्पदन्त और भूतबलि की महत्वपूर्ण रचना है। छ: खण्डों में विभक्त होने से यह ग्रन्थ षट्खण्डागम के नाम से जाना जाता है। इसके 6 खण्ड निम्नानुसार हैं -
' जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा, आचार्य देवेन्द्रमुनि, पृ. 559-555
40 For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org