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आधुनिक युग में जैननाचार्य घासीलाल जी म. ने 32 आगमों पर संस्कृत भाषा में टीकाओं की रचना की है। आचार्य महाप्रज्ञजी ने भी आचारांग और भगवतीसूत्र पर संस्कृत में भाष्य लिखे हैं। आचार्य देवेन्द्रमुनिजी ने कल्पसूत्र पर हिन्दी भाषा में सटीक विवेचना निर्मित की है।
टब्बा साहित्य
जब टीकाओं की भाषा आगम रसिकों की समझ से परे हो गयी, तब जनहित की दृष्टि से आगमों के अर्थ को स्पष्ट करने वाली लोकभाषा में रचित संक्षिप्त टीकाएँ बनायी गयी, जिन्हें टब्बा कहा गया।
स्थानकवासी आचार्य मुनि धर्मसिंह जी ने कई आगम-ग्रन्थों पर टब्बे निर्मित किये।
टब्बों के अनन्तर अनुवादयुग प्रारम्भ हुआ। आगम-साहित्य का अनुवाद मुख्य रूप से तीन भाषाओं में उपलब्ध होता है - 1. अंग्रेजी, 2. गुजराती और 3. हिन्दी। अंग्रेजी अनुवाद - जर्मन विद्वान डा. हर्मन जैकोबी ने आचारांग, सूत्रकृतांग, उत्तराध्ययन
और कल्पसूत्र का अंग्रेजी अनुवाद किया। अभ्यंकर ने दशवैकालिक का अंग्रेजी अनुवाद किया है। इसके अतिरिक्त उपासकदशांग, अन्तकृतदशांग, विपाक और निरयावलिकासूत्र के अंग्रेजी अनुवाद हो चुके हैं। गुजराती अनुवाद - आगम साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान पण्डित बेचरदासजी दोशी ने भगवतीसूत्र, राजप्रश्नीय, ज्ञाताधर्मकथा और उपासकदशांगसूत्र के अनुसाद प्रकाशित किये
पंडित दलसुखभाई मालवणिया ने स्थानांग, समवायांग का संयुक्त अनुवाद प्रकाशित किया है। इसके अतिरिक्त मूर्तिपूजक सम्प्रदाय के विद्वान् मुनिवरों ने सुन्दर अनुवाद किये हैं - जैसे आगमप्रभावक पुण्यविजयजी मा. ने नन्दी, अनुयोगद्वार, प्रज्ञापना आदि आगमों के अनुवाद तथा प्रस्तावनाएँ लिखीं, जो महत्त्वपूर्ण हैं। हिन्दी अनुवाद - आचार्य अमोलकऋषिजी ने 3 वर्ष के स्वल्प समय में 32 आगमों का हिन्दी अनुवाद कर महान श्रुत सेवा की।
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