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________________ इसी प्रकार उत्तराध्ययन चूर्णि, आचारांग चूर्णि, सूत्रकृतांग चूर्णि, जीतकल्पबृहच्चूर्णि, निशीथ विशेष चूर्णि, बृहत्कल्प तथा दशाश्रुतस्कन्ध चूर्णि आदि चूर्णियाँ हैं। चूर्णिय साहित्य में ऐतिहासिक, सामाजिक एवं कलात्मक सामग्री प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। ये वे कृतियाँ हैं जो मानव समाजशास्त्र की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। टीका साहित्य ___ आगमों के स्पष्टीकरण हेतु टीका साहित्य की रचना की जाती है। टीकाओं की भाषा संस्कृत है, पर कथाओं में प्राकृत का प्रयोग दृष्टिगत होता है। व्याख्या साहित्य में टीका साहित्य का स्थान सर्वोपरि है। इन टीकाओं के परिशीलन से सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक और भौगोलिक परिस्थितियों का सम्यक् ज्ञान होता है। ___ आचार्य हरिभद्रसूरि ने आवश्यक सूत्र, दशवैकालिक, नन्दी और अनुयोगद्वार पर टीकाएँ निर्मित की हैं। आचार्य शीलांक ने आचारांग और सूत्रकृतांग पर सार्थक टीकाएँ लिखी हैं। __ शान्तिसूरि ने उत्तराध्ययन सूत्र पर शिष्यहिता टीका का निर्माण किया है; द्रोणाचार्यसूरि ने ओधनियुक्ति व लघुभाष्य पर वृत्तियाँ लिखीं हैं। आचार्य अभयदेवसूरि नवांगी टीकाकार थे, उन्होंने 9 अंगों पर टीकाएँ निर्मित की। वे नौ अंग-आगम निम्न हैं - स्थानांग, समवायांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञाताधर्मकथांग, उपासकदशांग, अन्तकृतदशा, अनुत्तरोपपातिक, प्रश्न व्याकरण, विपाकसूत्र। आचार्य मलयगिरी ने निम्न आगमों पर महत्वपूर्ण टीकाएँ प्रणीत की हैं - (1) भगवती सूत्र द्वितीयशतक वृत्ति (2) राजप्रश्नीयोपांगटीका, (3) जीवाभिगमोपांगटीका (4) प्रज्ञापनोपांगटीका (5) चन्द्रप्रज्ञप्ति उपांगटीका (6) सूर्यप्रज्ञप्ति उपांगटीका (7) नन्दी सूत्र वृत्ति (8) व्यवहारसूत्र वृत्ति (७) बृहत्कल्प पीठिकावृति (10) आवश्यकवृत्ति (11) पिण्डनियुक्ति टीका (12) ज्योतिष्करण्डक टीका (13) धर्मसंग्रहणी वृत्ति (14) कर्मप्रकृतिवृति (15) पंचसंग्रहवृति (16) षडशीतिवृत्ति (17) सप्तिकावृत्ति (18) बृहत्संग्रहणीवृत्ति (19) बृहत्क्षेत्र समासवृत्ति (20) मलयागिरि शब्दानुशासन । मल्लधारी हेमचन्द्र, नेमिचन्द्र सूरि ने आदि कई विशिष्ट विद्वानों ने भी टीकाएँ संरचित की हैं। 30 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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