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________________ जीतकल्पभाष्य और जीत - परम्परा से प्राप्त है, वह जीत व्यवहार है । इसमें आचार्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा इन पांचों प्रकार के व्यवहारों का विवेचन किया है। जो व्यवहार आचार्य विशेषावश्यकभाष्य इसमें जैन आगमों के समस्त मौलिक एवं मार्मिक विषयों की चर्चा है । इसमें न केवल जैन मान्यताओं का निरूपण है अपितु इतर भारतीय दार्शनिक मान्यताओं का समीक्षा, खण्डन आदि भी किया गया है। गणधरवाद एवं निह्नववाद उपलब्ध है। 1 ओघनिर्युक्ति भाष्य और पिण्डनिर्युक्तिभाष्य इन दोनों में श्रमणधर्म पर विवेचन किया गया है। चूर्णि साहित्य जैन आगमों की प्राकृत अथवा संस्कृतामिश्रित प्राकृत व्याख्याऐं चूर्णियां कहलाती हैं। कुछ चुर्णियों के रचयिता जिनदासगणि महत्तर माने जाते हैं । नन्दी चूर्णि यह चूर्णि मूलसूत्र के अन्तःस्तल को स्पर्श करती है, इसमें मुख्यत्वेन ज्ञान के स्वरूप की चर्चा है । केवलज्ञान और केवलदर्शन के क्रमभावित्व का समर्थन किया है। अनुयोगद्वार चूर्णि इसमें आवश्यकों पर विस्तार से प्रकाश डाला है, सप्तरस, नवरस आदि का भी इसमें सोदाहरण निरूपण है । 1 आवश्यकचूर्ण इसमें अनेक पौराणिक, ऐतिहासिक महापुरुषों के जीवन अंकित हैं, जिनका ऐतिहासिक व सांस्कृतिक दृष्टि से महत्व है तथा इसमें षट् आवश्यक का वर्णन भी है । Jain Education International - दशवैकालिक चूर्णि इस पर दो चूर्णियाँ हैं प्रथम के कर्ता अगस्त्यसिंह स्थविर जबकि द्वितीय के कर्ता जिनदासगणि महत्तर हैं। एक में दृष्टान्तों व कथाओं के माध्यम से मूलविषय को स्पष्ट किया है तथा दूसरी चूर्णि दशवैकालिक नियुक्ति के आधार पर निर्मित है। - 1 जिनवाणी (जैनागम विशेषांक), वही, पृ. 480-481 - 37 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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