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________________ भाष्य नियुक्तियों के गम्भीर रहस्यों को विस्तार से प्रकट करने के लिए प्राकृत भाषा में जो पद्यात्मक व्याख्याएँ निर्मित हुई, वे भाष्य के नाम से विश्रुत हैं। भाष्य साहित्य में प्राचीन अनुश्रुतियों, लौकिक कथाओं और श्रमणों के परम्परागत आचार-विचार की विधियों का प्रतिपादन है, निम्न आगम ग्रन्थों पर भाष्य उपलब्ध हैं - आवश्यक 2. दशवैकालिक 3. उत्तराध्ययन बृहत्कल्प पंचकल्प व्यवहार 7. निशीथ जीतकल्प 9. औधनियुक्ति पिण्डनियुक्ति भाष्यकारों में जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण और संघदासगणि ये दो मूर्धन्य विद्वान हुए हैं। विशेष्यावश्यक भाष्य और जीतकल्प भाष्य से रचयिता जिनभद्र एवं बृहत्कल्पभाष्य, पंचकल्पभाष्य के निर्माता संघदासगणि हैं। उत्तराध्ययन भाष्य - यह भाष्य शान्तिसूरि द्वारा निर्मित है। इसमें विशेष रूप से बोटिक की उत्पति, पुलाक बकुश आदि निर्ग्रन्थों के स्वरूप पर विशद रूपेण विश्लेषण है। दशवैकालिक भाष्य - इसमें 63 गाथाएँ हैं, इसमें हेतु-विशुद्धि एवं मूलगुण व उत्तरगुणों का प्रतिपादन है। बृहत्कल्पमाष्य - इसके प्रणेता संघदासगणि हैं। इसमें जैन श्रमणों के आचार-विचार का सूक्ष्मतम एवं तार्किक विवेचन किया गया है। प्राचीन भारतीय संस्कृति की दृष्टि से इस भाष्य का अपना विशेष महत्त्व है। पंचकल्पभाष्य - यह पांच कल्पों में विभक्त पंचकल्पनियुक्ति का व्याख्यानरूप है। प्रव्रज्या के योग्य और अयोग्य व्यक्तियों का साधुओं के विचरण योग्य आर्य क्षेत्र का भी वर्णन है। व्यवहारभाष्य – इसमें व्यवहार में दोषों की संभावना को दृष्टि में रखते हुए प्रायश्चित पर उनके अर्थ, भेद, निमित्त आदि की दृष्टि से व्याख्या की गई है। 36 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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