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________________ नोट भगवान महावीर के छठे गणधर मण्डिक और सातवें गणधर मौर्यपुत्र के सम्बन्ध में दो तथ्य मिलते हैं कतिपय विद्वान जैसे कि आचार्य हेमचन्द्र, 8. 9. जिनदासगणि महत्तर का मानना है कि दोनों सहोदर भाई थे, पिता अलग हैं माता एक ही है। समवायांगसूत्र में इन दोनों की आयु का संदर्भ देते हुए बताया कि दीक्षा लेते समय मण्डिक जी की उम्र 53 वर्ष की और मौर्यपुत्र की 65 वर्ष की थी, तब फिर दोनों भाइयों में यह कैसे सम्भव है? अतः स्पष्ट है कि दोनों सहोदर भाई नहीं थे । अकम्पित जी अकम्पित जी मिथिला नगरी के निवासी थे, वे गौतम गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके पिता देव और माता जयन्ति थीं। 300 छात्रों के साथ 48 वर्ष की अवस्था में प्रभु महावीर के समीप दीक्षा ली। पूर्व में इनको नारकी के अस्तित्व के विषय में शंका थी, समाधान पाकर प्रभु चरणों में समर्पित हो गये। 57 वर्ष की अवस्था में केवलज्ञान प्राप्त किया और भगवान महावीर के अन्तिम वर्ष में 78 वर्ष की अवस्था में राजगृह के गुणशीलक चैत्य में निर्वाण प्राप्त किया । अचलभ्राता जी नवम गणधर अचलभ्राता जी कोशला ग्राम के निवासी हारीत गोत्रीय ब्राह्मण थे । आपके पिता वसु और माता नन्दा थी। अपने से पूर्व इन्द्रभूति - अग्निभूति आदि 8 वेदज्ञ विद्वानों को श्रमण भगवान महावीर के समवशरण से पुनः आते न देखकर अचलभ्राता जी भी गये। उन्होंने भी मन में रही 'पुण्य-पाप के अस्तित्व' में रही शंका का समाधान पाया, तदन्तर अपने 300 शिष्यों के साथ 46 वर्ष की अवस्था में संयम स्वीकार किया। 12 वर्ष तक छद्मस्थावस्था में रहे और 14 वर्ष केवली अवस्था में विचरण कर 72 वर्ष की अवस्था में मासिक अनशन के साथ राजगृह के गुणशीलक चैत्य में निर्वाण को प्राप्त हुए । मैतार्य जी I मैतार्य जी वत्सदेशान्तर्गत तुंगिक संन्निवेश के निवासी कौडिन्य गोत्रीय ब्राह्मण इनके पिता का नाम दन्त तथा माता का नाम वरुणदेवी था। वे जब प्रभु महावीर के समीप गये, उनके अन्तर्मन में रही 'परलोक के अस्तित्व' विषयक शंका का समाधान पाकर प्रभु चरणों में 300 शिष्यों के साथ दीक्षित हो गये। मैतार्य जी ने 36 वर्ष की 10. - Jain Education International 1 495 - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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