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5. सुधर्मा जी
गणधर सुधर्मा कोल्लागसंनिवेश के निवासी अग्निवैश्यायन गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके पिता धम्मिल और माता भद्दिला थी। 500 छात्र इनके पास अध्ययन करते थे। 50 वर्ष की अवस्था में प्रभु महावीर के पास शिष्यों के साथ प्रव्रज्या ली। 42 वर्ष पर्यन्त छद्मस्थावस्था में रहे। भगवान महावीर के निर्वाण के बाद 12 वर्ष व्यतीत होने पर केवली हुए और आठ वर्ष तक केवली अवस्था में रहे।
श्रमण भगवान महावीर के सभी गणधरों में सुधर्मा दीर्घजीवी थे, अतः अन्यान्य गणधरों ने अपने-अपने निर्वाण के समय अपने-अपने गण सुधर्मा को समर्पित कर दिये। वर्तमान में भी श्रमण परम्परा सुधर्मा गणधर के नेतृत्व की है।
महावीर निर्वाण के 20 वर्ष बाद सुधर्मा स्वामी ने 100 वर्ष की अवस्था में मासिक अनशनपूर्वक राजगृह के गुणशील चैत्य में निर्वाण प्राप्त किया। 6. मण्डिक जी
मण्डिक मौर्यसंन्निवेश में रहने वाले वसिष्ठ गौत्रीय ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम धनदेव और माता का नाम विजयादेवी था। सुधर्मा स्वामी के न आने पर मण्डिक जी भी प्रभु महावीर के समीप पहुंचे। 'बन्ध और मोक्ष' के प्रति जो शंका थी, उसका समाधान पाकर 350 छात्रों के साथ 53 वर्ष की अवस्था में प्रव्रज्या ली। 67 वर्ष की अवस्था में केवल ज्ञान प्राप्त किया और 83 वर्ष की अवस्था में गुणशीलक चैत्य में निर्वाण को प्राप्त
हुए।
7. मौर्यपुत्र जी
मौर्यपुत्र जी काश्यपगोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम मौर्य और माता का नाम विजयादेवी था। मौर्य-सन्निवेश के निवासी थे। आप भी प्रभु महावीर के समीप गये तथा 'देवों के अस्तित्व' विषयक शंका का समाधान पाकर 350 छात्रों के साथ 53 वर्ष की अवस्था में संयम स्वीकार किया। 79 वर्ष की अवस्था में केवल ज्ञान प्राप्त किया और भगवान महावीर के अन्तिम वर्ष में 83 वर्ष की अवस्था में मासिक अनशन पूर्वक राजगृह के गुणशीलक चैत्य में निर्वाण प्राप्त किया।
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