________________
7.
संस्तारक - इसमें साधु के लिए अन्त समय में तृण का आसन अर्थात संस्तारक ग्रहण कर समाधिमरण का वरण करने की विधि बताई है। इसमें समाधिमरण करने वाले अनेक मुनियों के दृष्टान्त हैं। गच्छाचार - इस ग्रन्थ में गच्छ में रहने वाले आचार्य तथा श्रमण-श्रमणियों के आचार के स्वरूप का वर्णन है। जो असदाचारी श्रमण गच्छ में रहता है, वह भव वृद्धि करता है और जो सदाचारी श्रमण गच्छ में रहता है वह अपने जीवन का उत्कर्ष करता है, परिणामस्वरूप संसार सागर से तिर जाता है। गणिविद्या - यह ज्योतिष विद्या का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें दिवस, तिथि, नक्षत्र, करण, ग्रह, मुहूर्त, शकुन आदि के विषय में विचार किया है। यह ग्रन्थ अत्यन्त प्रयोगी और उपयोगी है। देवेन्द्रस्तव - इसमें 32 इन्द्रों के निवास, भवन, विमान, ऊँचाई वर्ष तथा अवधिज्ञान के क्षेत्र आदि के सम्बन्ध में वर्णन है। मरणसमाधि - यह विषयवस्तु की दृष्टि से बृहद् है। इसमें आराधक, आराधना, आलोचना, संलेखना, क्षमायाचना आदि 14 द्वारों से समाधिमरण की विधि बतायी गई है। अनित्य-अशरण आदि द्वादश भावनाओं पर प्रकाश डाला है। इन दस प्रकीर्णकों के अतिरिक्त कुछ प्रकीर्णक और भी हैं जैसे चन्द्रवेध्यक, वीरस्तव, तित्थोगाली अजीवकल्प, सिद्धपाहुड़ आदि ।'
इन सभी प्रकीर्णकों में जीवन-शोधन की विविध प्रक्रियाएं बताई गई हैं। जीवन में
निर्मलता व पवित्रता इनके पठन में आती हैं।
अर्द्ध मागधी आगमों का व्याख्या साहित्य
आगम साहित्यों के सुस्पष्टीकरण व विशदीकरण के लिए वाङ्मय की रचना की गई है। आगम संकलन के साथ आचार्यों ने उन पर व्याख्या साहित्य लिखना प्रारम्भ कर दिया था। इस व्याख्या साहित्य को निम्न पंचविध कोटि में विभक्त किया है -
1. नियुक्ति, 2. भाष्य, 3. चूर्णि, 4. टीका और 5. टब्बा
1 जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा, आचार्य देवेन्द्रमुनि, वही, पृ. 388-402
34 For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org