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ने इस मान्यता को अनुचित माना और अन्ततोगत्वा आषाढ़भूमि का शिष्य समुदाय भी इस सन्देहवादी जीवन दृष्टि से विमुख होकर सन्मार्ग पर लौट आया। ।
अश्वमित्र का समुच्छेदक वाद वस्तुतः बौद्ध क्षणिकवाद का ही एक रूपान्तरण था। बौद्ध परम्परा में भी अश्वमित्र को क्षणिकवाद का तार्किक प्रस्तोता माना जाता है। यह अभी शोध का विषय हो सकता है कि समुच्छेदवादी अश्वमित्र मूलतः बौद्ध थे या इसी नाम के जैन परम्परा के कोई आचार्य रहे। क्षणिकवाद या क्षणभंगवाद की समीक्षा जैनाचार्यों ने की। जैन आचार्य भी पर्यायों की प्रतिक्षण उत्पत्ति और विनाश को स्वीकारते हैं, उसके साथ वे यह भी मानते हैं कि वस्तु का द्रव्य पक्ष इन परिवर्तनों के मध्य भी अपरिवर्तित रहता है। पर्याय की अपेक्षा से अश्वमित्र का समुच्छेदवाद समुचित हो, किन्तु द्रव्य की अपेक्षा से उसे समुचित नहीं माना जा सकता। जैनदर्शन द्रव्य और पर्याय दोनों को दृष्टि में रखकर अपनी दार्शनिक अवधारणा को प्रस्तुत करता है, जबकि अश्वमित्र मात्र पर्याय दृष्टि को रखकर अपनी बात कह रहा था।
पंचम निह्नव आर्य गंग की यह मान्यता थी कि व्यक्ति एक ही समय दो भिन्न-भिन्न अनुभूतियों का अनुभव कर सकता है, किन्तु यह बात भी व्यावहारिक स्तर पर ही सत्य प्रतीत हो सकती है, जो लोग समय की सूक्ष्मता से अपरिचित हैं वे ही ऐसी बात कर सकते हैं। प्रति समय एक ही अनुभूति सम्भव है, जिस प्रकार स्थित चित्रों को तीव्र गति से प्रेषित करने पर हमें सिनेमा की परदे पर एक गतिशीलता का भ्रम होता है, उसी प्रकार एक समय में दो अनुभूतियों का भ्रम होता है, किन्तु यथार्थ में एक समय में एक ही अनुभूति सम्भव है। विशेषावश्यकभाष्य में कोमल पत्तों के छेदन की क्रिया के माध्यम से इस बात को समझाया गया है। 10 या 20 पत्तों को लेकर जब हम सूई में छेद करते हैं तो छेद क्रमशः एक पत्ते के बाद ही दूसरे का होता है किन्तु व्यवहार में ऐसा लगता है कि हमने सभी पत्तों को एक साथ छेद लिया। उसी प्रकार विभिन्न अनुभूतियाँ कम अनुभूत क्रम से होती है किन्तु उनमें अन्तराल के अभाव के कारण ऐसा भ्रम हो जाता है कि एक ही साथ दो अनुभूतियों का अनुभव सम्भव है। वस्तुतः यह भ्रान्ति है सत्य नहीं। इसलिए जैन दार्शनिक ने आर्य गंग के द्विक्रिया उपयोगवाद को स्वीकार नहीं किया।
छठे निह्नव रोहगुप्त की यह मान्यता थी कि संसार में जीव और अजीव ऐसी दो राशि न होकर जीव-अजीव और नोजीव ऐसी तीन राशियाँ हैं। जैन दर्शन ने नोकषाय,
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