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________________ - इन तीनों प्रकार के बंध को सूचिकलाप की उपमा देकर और स्पष्ट किया जाता जो कर्म धागे में लपेटी हुई सूईयों के समान होते हैं, उन्हें "बद्ध” कहते हैं। जो कर्म लोहे की पत्ती से लपेटी हुई सूईयों के समान हैं, वे कर्म “बद्ध स्पृष्ट" कहलाते हैं। सूईयों को आग में तपाकर हथौड़े से पीटने पर उनसे बने हुए पिण्ड की तरह जो कर्म होते हैं, उन्हें "बद्ध स्पृष्ट अथवा निकाचित" कहा जाता है। निकाचित और अनिकाचित में यह अन्तर है कि निकाचित कर्मों में अपवर्तनादि 8 करण नहीं होते हैं, और अनिकाचित कर्मों में होते हैं। 8 करण इस प्रकार हैं - 1. अपवर्तना 2. उद्वर्तना संक्रमण क्षपण उदीरणा 6. उपश्रावणा 7. निध्दत्त 8. निकाचना कर्मपुद्गलों का आत्मप्रदेशों के साथ क्षीरनीरवत् या आग्नि-लौह-पिण्ड के समान सम्बन्ध होता है। यह विवेचन विन्ध्य मुनि से गोष्ठामाहिल ने सुना तो विचार किया कि यह सिद्धान्त गलत है, क्योंकि इस प्रकार तादात्म्य सम्बन्ध मानने पर तो मोक्ष का अभाव हो जायेगा, अतः जीव और कर्म का सम्बन्ध सर्प-कंचुकीवत् स्पृष्ट मानना चाहिए। जैसे - कंचुकी सर्प को स्पर्श करती हुई उसके साथ रहती है, उसी तरह कर्म भी रहते हैं। सर्प जिस तरह कंचुकी छोड़ देता है, उसी तरह कर्म भी छूट जायेंगे, और मोक्ष भी मिल जायेगा। समीक्षा आचार्य ने इस शंका की समीक्षा की तथा समाधान किया कि कर्म और जीव का सम्बन्ध सर्प-कंचुकीवत् मानने पर कई दोष उपस्थित होते हैं। जैसे कि कर्म जीव के प्रत्येक प्रदेश को स्पर्श करता है या शरीर की त्वचा का ही स्पर्श करता है। यदि कर्म जीव के प्रत्येक प्रदेश को स्पर्श करता है तो कर्मों को जीव में पुट्ठो जहा अबद्धो, कंचुइणं कंचुओ समन्नेइ। एवं पुट्ठबद्धं जीवं कम्मं समन्नेइ।। विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 2517 469 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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