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इस प्रकार उसने 144 प्रश्न किये - 6 मूल पदार्थ - द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवायो द्रव्य के 9 – भूमि, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, काल, दिशा, आत्मा और मन।
गुण के 17 - रूप, रस, गंध, स्पर्श, संख्या, परिणाम, पृथक्त्व, महत्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष और प्रयत्न।
कर्म 5 - उत्क्षेपण, अवक्षेपण, आकुंचन, प्रसारण, गमन। सामान्य 3 - सत्ता सामान्य, सामान्य विशेष, विशेष ।
इन 36 प्रश्नों को प्रकृति से, अकारात्मक से, नोकारात्मक और उभयनिषेध से पूछे, जैसे - प्रकृति से पृथ्वी, आकार से अपृथ्वी, नोकार से नोपृथ्वी और उभय-निषेध से नोअपृथ्वी। इस प्रकार 36 भेद को चार बार पूछने पर 144 प्रश्न हुए।
पृथ्वी मांगने पर मिट्टी का ढेला, अपृथ्वी से जलादि नो पृथ्वी से ढेला का एक टुकड़ा, नो अपृथ्वी से पुनः जल दिया, किन्तु इससे यह सिद्ध होता है कि मूलतः दो ही प्रकार के पदार्थ हैं, क्योंकि देव व्यवहार नय से सावयव वस्तु का पृथ्वी, अपृथ्वी और नोपृथ्वी इन तीन प्रकार से देता है किन्तु निश्चय नय से तो पृथ्वी और अपृथ्वी ये दो ही दे सकता है।
जब रोहगुप्त ने जीव मांगा तो देव शुक-सारिकादि ले आया। अजीव मांगने पर पत्थर का टुकड़ा लाया, नोजीव मांगने पर फिर पत्थर तथा नोअजीव मांगने पर शुक-सारिका आदि लाया। इस प्रकार जीव के बारे में पृच्छा करने पर दो ही पदार्थ उपलब्ध हुए - जीव और अजीव। जीव के टुकड़े नहीं होते क्योंकि वह निरवयव है। इस प्रकार रोहगुप्त पराजित हुआ।' गोष्ठामाहिल का अबद्धिकवाद और उसकी समीक्षा
अबद्धिक मत का अर्थ है - कर्म आत्मा के साथ बद्ध नहीं होते. सिर्फ स्पर्श करते
- गोष्ठामाहिल अबद्धिक मत का प्रवर्तक था। दशपुर नगर में यह प्रारम्भ हुआ। दशपुर नगर में आर्यरक्षित ब्राह्मणपुत्र थे, उन्होंने वेदों - पुराणों का अध्ययन किया।
' विशेषावश्यकभाष्य, पृ. 318-322
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