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________________ अनुयोगद्वार में नयविचार में बताया गया है कि - समभिरुढ नय, शब्दनय को कहता है कि “जह कम्मधारएण भणसि तो एवं भणाहि - जीवे य से पएसे य से, से पएसे नोजीवे।" अर्थात् जीव रुप जो प्रदेश है उसके स्वप्रदेश नोजीव हैं। जैसे - घट का एक देश नो घट है, वैसे ही जीव का एक देश नो जीव है, यह सिद्ध हो रहा है। जीव और अजीव की सिद्धि के साथ नोजीव भी आगम से सिद्ध है। समीक्षा प्रमाण चार प्रकार के माने गये हैं -- प्रत्यक्ष, परोक्ष, अनुमान और आगम। आगम अर्थात् आप्त पुरुषों का वचन, जिसमें कोई बाधा नहीं है। जिस आगम वचन से नोजीव की सिद्धि के लिए उद्धरण दिये हैं, उन्हें आगमों में निम्नानुसार कहा गया है - 1. स्थानांग सूत्र – “दुवे रासी पण्णता, तंजहा जीवा चेव अजीवा य” दो राशि कही है - जीव राशि और अजीव राशि।' 2. अनुयोग द्वार – कइविहा गंभंते। दव्वा पण्णता? गोयमा! दुविहा पण्णता, तंजहा जीवदव्वा य अजीवदव्वा। अर्थात् हे भगवन्त! द्रव्य कितने प्रकार के हैं? हे गौतम! द्रव्य दो प्रकार के हैं - जीव द्रव्य और अजीव द्रव्य । उत्तराध्ययनसूत्र में बताया है कि - जीवा चेव अजीवा य, एस लोए वियाहिए।' इस प्रकार किसी भी आगम में नोजीव की प्ररुपणा नहीं की है। जो धर्मास्तिकाय आदि के देश कहे हैं वे देश उनसे भिन्न नहीं हैं, विवक्षामात्र से भिन्न कहे गए हैं। इसी तरह पूँछ भी छिपकली से अभिन्न ही है, क्योंकि वह उसी के साथ लगी हुई है। . शरीर के छिन्न अवयव में रहे हुए जीव प्रदेशों के साथ शरीर में रहे जीव-प्रदेशों का कमलनाल-तन्तुवत् सम्बन्ध बना रहता है। अतः वह नोजीव नहीं हो सकता। यह बात भगवतीसूत्र में बताई गई है - अनुयोगद्वारसूत्र, प्रमाणद्वार स्थानांगसूत्र, द्वितीय स्थान उत्तराध्ययनसूत्र, 3612 462 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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