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इन विद्याओं के अतिरिक्त उन्होंने उसे एक अभिमंत्रित रजोहरण भी दिया जिससे कि पराजित नहीं होना पड़े।
राजा बलश्री के समक्ष वाद प्रारम्भ हुआ। परिव्राजक ने अपने पक्ष की स्थापना करते हुए कहा - राशि दो हैं – जीव राशि और अजीव राशि।
रोहगुप्त ने तीन राशियों की स्थापना करते हुए कहा कि - परिव्राजक का कथन मिथ्या है। विश्व में प्रत्यक्षतः तीन राशियाँ उपलब्ध हैं। नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य आदि जीव हैं, घट-पट आदि अजीव हैं तथा छिपकली की कटी पूंछ नोजीव है। इस प्रकार अनेक युक्तियों द्वारा रोहगुप्त ने परिव्राजक को निरुत्तर कर दिया। पोट्टशाल परिव्राजक को पराजित कर रोहगुप्त गुरु के समीप आया और सारा हाल सुनाया, गुरु ने कहा – तुम जीत गये, यह ठीक है किन्तु यह हमारा सिद्धान्त (जिनप्रज्ञप्त) नहीं है, जिन मत में जीव और अजीव दो ही राशियाँ हैं।' रोहगुप्त नोजीव को तीसरी राशि मानने लगा, उसका कथन था कि - नोजीव अर्थात् जीव का एक देश, न कि जीव का अभाव। छिपकली की कटी हुई पूँछ को जीव नहीं कहा जा सकता, और न ही अजीव कहा जा सकता क्योंकि उसमें हलन-चलन होती है, बल्कि वह तो शरीर का खण्डविशेष है तथा विलक्षण है।
शास्त्रों में कहा गया है - "अजीवा दुविहा पण्णता, तंजहा रुवि अजीवा य अरुवी अजीवा य । रुवि अजीवा चउव्विहा पण्णता, तंजहा – खंधा, देसा, पएसा, परमाणु, पोगला। अरुवि अजीवा दसविहा पण्णता, तंजहा - धम्मत्थिकाए धम्मत्थिकाएस्सदेसे, धम्मत्थिकायस्सपएसे एवम धम्मत्थिकाएवि, आगासत्थिकाएवि अद्धासमए।"
अजीव दो प्रकार के हैं - रुपी अजीव और अरुपी अजीव। रुपी अजीव चार प्रकार के हैं - स्कन्ध, देश, प्रदेश और परमाणु। अरुपी अजीव 10 प्रकार के हैं - धर्मास्तिकाय, धर्मास्तिकाय का देश और धर्मास्तिकाय का प्रदेश। इसी तरह अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय के 3-3 भेद मिलकर 9, तथा 10 अद्धासमय।
इस सूत्रांश से सिद्ध होता है कि जब धर्मास्तिकाय के अखण्ड होने पर भी स्थविरों ने स्कंध, देश, प्रदेश के रूप में खण्ड की कल्पना कर ली है तो छिन्न अवयव को नोजीव क्यों नहीं कहा जा सकता?
जं देसनिसेहपरो, नोसद्दो जीवदव्वदेसा य। गिहकोइलाइपुच्छं, विलक्खणं तेण नो जीवा।। विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 2460
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