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का है'। समीक्षा करने पर यह सिद्ध हुआ कि दो क्रियाओं का ज्ञान भिन्न-भिन्न समय में होता है।'
आर्य गंग को यह मिथ्या धारणा हुई कि एक साथ दो क्रियाओं का वेदन होता है, गुरू ने कई युक्तियों से समझाया किन्तु वे समझे नहीं और अपने मत की प्ररूपणा करने लगे। एक बार राजगृह नगर में महातपस्तीरप्रभव नामक झरने के किनारे मणिनाग नामक यज्ञ के चैत्य में रूके। सभा में वैक्रियवाद का निरूपण किया, तब क्रुद्ध मणिनाग ने कहा - 'अरे दुष्ट! तुम जिन भगवान के कथन को मिथ्या सिद्ध कर रहे हो, इस झूठे उपदेश को छोड़ दो, नहीं तो मार डालूंगा। तब आर्य गंग ने मिथ्या धारणा छोड़ दी। रोहगुप्त का त्रैराशिकवाद और उसकी समीक्षा
त्रैराशिक मत का अर्थ है - जीव, अजीव और नोजीव। इस प्रकार की तीन राशियों का सद्भाव मानना।
एक बार रोहगुप्त किसी अन्य ग्राम से अतिरंजिका नगरी के भूतगृह नामक चैत्य में ठहरे हुए अपने गुरु श्रीगुप्त को वन्दना करने जा रहा था। मार्ग में पोट्टशाल नामक परिव्राजक मिला, जो स्वयं को भूलोक का एकमात्र विद्वान समझता था तथा जम्बूद्वीप में मुझे कोई पराजित नहीं कर सकता एतदर्थ जम्बू वृक्ष की शाखा रखता था। रोहगुप्त ने उसके साथ वाद करने की चुनौती दी। आचार्य को ज्ञात होने पर उन्होंने परिव्राजक को पराजित करने के लिए उसको जो 7 विद्याएँ आती थीं, उसी के प्रत्युत्तर में आचार्य ने 7 विद्याएँ सिखाईं -
वृश्चिक विद्या सर्प विद्या
नाकुली मूषक विद्या
बिडाली मृगी विद्या
व्याघ्री वराही विद्या
सिही काक विद्या
उलूकी पोतकी विद्या
उलावकी
___ मायूरी
'जं च विसेसन्नाणं सामन्नन्नाण पुव्वयमक्स्स।
तो सामण्ण विसेसन्नाणाई नेगसमयम्मि।। विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 2445
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