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यदि यह माने कि संयम मोक्ष प्राप्ति के लिए लिया जाता है, तो क्षणिकवाद में मोक्ष नाश स्वरूप है, वह स्वतः सिद्ध है, तब संयम लेने की आवश्यकता नहीं है। मोक्ष को नित्य मानने पर क्षणिकवाद खण्डित हो जायेगा।
क्षणिकवाद के अनुसार मोक्ष का तात्पर्य विज्ञान, वेदना, संज्ञा, संस्कार और रूप स्कंध की सन्तान परम्परा का नाश करना, इन पंचस्कन्धों का समुच्छेद करने के लिए संयम/ग्रहण दीक्षा का विधान है पर यह विधान उन्हीं के अनुसार गलत है क्योंकि जो जीव दूरसे ही क्षण में सर्वथा नष्ट हो जाता है उसे सन्तान परम्परा के नाश करने का क्या प्रयोजन? तथा जो जीव सर्वथा अभाव स्वरूप होने वाला है उसे 'स्वसन्तान-परसन्तान' की चिन्ता से क्या प्रयोजन है?'
समस्त पदार्थ क्षणिक हैं, क्योंकि सर्व पदार्थों का अन्त में विनाश प्रत्यक्ष दिखाई देता है। घट का नाश मुद्गर आदि नहीं कर सकते, प्रत्येक वस्तु का स्वभाव प्रतिक्षण नाश होना है, यदि प्रतिक्षण नाश नहीं होगा तो अन्त में भी नाश नहीं हो सकेगा।
यह हेतु असिद्ध है, क्योंकि यदि पदार्थ का अन्तकाल में विनाश होता है तो सर्ववस्तु क्षणिक कैसे हो सकती है? वस्तु का नाश जैसे अन्त में दिखाई देता है, वैसे प्रथम या मध्यम में क्यों नहीं दिखाई देता? तथा जैन दर्शन में वस्तु का सर्वनाश नहीं मानते, अन्त में भी पर्यायान्तर होता है। घट कपालवस्था में भी मृतिकाद्रव्य रूप में रहता ही है, अगर सर्वनाश हो तो वह कपालरूप में भी न रहे, अभाव हो जाये। घटादि के लिए अन्त में विनाश की कल्पना कर सकते हैं किन्तु आकाश, काल, दिशा आदि पदार्थों का अन्त में भी नाश नहीं होता है, इन्हें किस प्रकार क्षणिक सिद्ध कर सकते हैं?
नय दो प्रकार का है - द्रव्यार्थिक नय और पर्यायार्थिक नय। द्रव्यार्थिक नय का मत है कि सभी वस्तुएँ नित्य स्वभाव वाली हैं तथा पर्यायार्थिक नय से समस्त वस्तुएँ उत्पाद-विनाश स्वभाव से युक्त हैं। इन दोनों में से जब हम किसी एक नय को मान लेते हैं तो मिथ्यात्व होता है, क्योंकि प्रत्येक वस्तु अनन्त पर्यायवान है। दोनों नयों के
। छिनेण अछिन्नेण व किं संताणेण सव्वनट्ठस्स। किं व अभविभूयस्स, स परसंताणचिंताए।। विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 2410 अंते व सव्वनासो पडिवण्णो केण जदुवलद्धीओ। कप्पेसि खणविणासं नणु पज्जायंतरं तंपि।। विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 2413 जज्जायनयमयमिणं जं सव्वं पइसमयविगय संभवसहावं। दव्यट्टियस्सणिच्चं एगसमयं, एकयरमयं च मिच्छत।। विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 2415
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