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________________ कि यदि उत्पन्न हुए जीव तत्समय में ही नष्ट हो जायेंगे तो फिर पुण्य-पाप का फल कैसे सम्भव होगा?' समीक्षा प्रत्येक पदार्थ उत्पाद-व्यय व ध्रौव्य से युक्त है। किसी भी वस्तु का पूर्ण रूप से नाश नहीं होता। वस्तुओं का प्रतिक्षण विनाशीत्व क्षणक्षयवादी ऋजुसूत्र या पर्याय की अपेक्षा से कहा है । नारकादि जीवों में प्रतिक्षण अवस्था बदलते रहने पर भी जीव द्रव्य सतत बना रहता है। प्रत्येक वस्तु द्रव्य की अपेक्षा नित्य तथा पर्याय की अपेक्षा से अनित्य (क्षणिक) है । एकान्त नित्य या एकान्त क्षणिक मानने वाले पक्ष मिथ्या है। 2 यदि आगम के अनुसार वस्तु का उच्छेद माने तो भी एकान्त क्षणिकवाद की सिद्धि नहीं होती, क्योंकि आगम में जीव को क्षणिक बताने के साथ-साथ नित्य भी बताया है। भगवती सूत्र में गौतम स्वामी ने प्रश्न किया कि हे भगवन् ! नारकी शाश्वत है या अशाश्वत ? जीव शाश्वत है या अशाश्वत ? हे गौतम! जीव शाश्वत भी है और अशाश्वत भी है। वह किस प्रकार है? तो भगवान ने बताया कि द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा जीव शाश्वत है और पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा से अशाश्वत है। इसी प्रकार नारकी जीव भी शाश्वत और अशाश्वत दोनों है । जो पहले आगम वाक्य दिया है, उससे सर्वथा क्षणिकत्व सिद्ध नहीं होता । समय परिवर्तन की अपेक्षा से प्रथम नारक तथा द्वितीय नारक आदि का कथन है पर दोनों समय में नारकी एक ही रहेगा। यदि पूर्ण रूप से परिवर्तन हो जाये तो 'प्रथम समय में उत्पन्न हुआ' यह विशेषण व्यर्थ हो जाता है। यदि प्रत्येक समय में नव्य नारकी उत्पन्न हो तो वह सदा प्रथम सामयिक ही रहेगा। नारकी जीव के स्थिर रहने पर ही प्रथम द्वितीय या तृतीय समय वाला यह विशेषण जम सकता है। ' - उप्पायनंतरओ सव्वं चिय सव्वहा विणासित्ति । गुरुवयनमेजनयमयमेयं, मिच्छे व सव्वमयं विशेषावश्यकभाष्य गाथा 2392 न हि सव्वा विणासो अद्धपज्जायमेतनासम्मि 2 3 - सपरपज्जायत धम्मणो, वत्थुणो जुत्तो ।। विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 2393 भगवतीसूत्र, शतक 24/4, सूत्र 35-36 4 को पदम समयनारगणासे, वितिसमवनारगोणाम। न सुरो घडो अभावो व होड़ जड़ सध्या नासो विशेषावश्यकभाष्य गाथा 2396 Jain Education International 452 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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