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कषायपाहुड़ में उल्लेख है कि - अर्थ के जानने के उपायभूत अधिकार को अनुयोगद्वार कहते हैं।' आर्यराक्षित ने इस सूत्र की रचना की है। इस आगम में मंगलाचरण के रूप में पंचज्ञान बताया है तदनन्तर श्रुतज्ञान के उद्देश्य, समुद्देश्य, अनुज्ञा
और अनुयोग की प्रवृति का संकेत कर आवश्यक अनुयोग पर सर्वांगीण प्रकाश डाला है। आवश्यकसूत्र की व्याख्या करते हुए साधक, साधना और साध्य की त्रिपुटी के रहस्य को उद्घाटित किया है। इसमें सभी विषयों को नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव निक्षेपों से घटित किया है।
उपक्रम निक्षेप शैली की प्रधानता एवं भेद-प्रभेदों की प्रचुरता होने से यह आगम अन्य आगमों से दुरुहपूर्ण है तथापि यह जैन दर्शन के रहस्य को समझने के लिए अतिशय उपयोगी है।
छेदसूत्र
सामायिक चरित्र स्वल्पकालीन भी तथा यावत्जीवन भी होता है, छेदोपस्थापनीय चारित्र जीवन पर्यन्त रहता है। प्रायश्चित का सम्बन्धी छेदोपस्थापनीय चारित्र से है। इसी चारित्र को लक्ष्य में रखकर प्रायश्चित सम्बन्धी सूत्रों को छेद सूत्र कहा गया। दशा-श्रुतस्कंध, वृहत्कल्प, व्यवहार और निशीथश्रुत ये प्रत्याख्यान पूर्व से उद्धृत सम्भावना है कि उससे छिन्न अर्थात् पृथक करने से इन्हें छेदसूत्र की संज्ञा दी गई हो।'
__ छेदसूत्रों को उत्तम श्रुत माना गया है, जिनदासगणी महत्तर ने स्वयं यह प्रश्न किया कि – छेदसूत्र उत्तम क्यों है? तदनन्तर स्वयं ने ही उसका समाधान करते हुए कहा – छेदसूत्रों में प्रायश्चित विधि का निरूपण है, उससे चरित्र की विशुद्धि होती है, एतदर्थ इन्हें उत्तम श्रुत माना गया है। स्थानकवासी परम्परा में चार छेदसूत्र माने गये हैं। मूर्तिपूजक परम्परा 6 छेदसूत्र मानती है।' दशाश्रुतस्कंध
दशाश्रुतस्कंध का नाम करण दस अध्ययनों के कारण है। प्रथम दशा में 20 असमाधिस्थान, दूसरी दशा में 21 सबलदोष, तृतीय में 33 आशातनाएं, चौथी दशा में आठ
' कषायपाहुड़, 3/3/22
जैन आगम साहित्य, मनन और मीमांसा, आ. देवेन्द्रमुनि, वही, पृ. 346 निशीथभाष्य, 6/84 की चूर्णि
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