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________________ किया, उनके तर्कों के समाधान का विवेचन आचार्य जिनभद्रगणि ने “विशेषावश्यकभाष्य" में विस्तार से वर्णन किया है, जिसे निह्नववाद के नाम से जाना जाता है। विभिन्न निह्नव और उनका काल 1. प्रथम निह्नव जमालि भगवान महावीर को केवलज्ञान उत्पन्न होने के 14 वर्ष बाद श्रावस्ती नगरी में हुए। भगवान महावीर के कैवल्य प्राप्ति के 16 वर्ष बाद ऋषभपुर में तिष्यगुप्ताचार्य, जीवप्रादेशिकवाद मानने वाले निह्नव हुए। भगवान महावीर के निर्वाण के 214 वर्ष बाद श्वेतविका नगरी में अव्यक्तवाद की उत्पत्ति हुई, जिसके प्रवर्तक आचार्य आषाढ़भूति के शिष्य थे। ___ समुच्छेदवाद की उत्पत्ति भगवान महावीर के निर्वाण के 220 वर्ष बाद मिथिलापुरी में हुई, जिसके प्रवर्तक आचार्य अश्वमित्र थे। भगवान महावीर के निर्वाण के 228 वर्ष बाद उल्लुकातीर नगर में द्विक्रियावाद की उत्पत्ति हुई। इसके प्रवर्तक गंग थे। 6. त्रैराशिक मत का प्रवर्तन भगवान महावीर के निर्वाण के 544 वर्ष बाद अन्तरंजिका नगरी में हुआ, जिसके प्रवर्तक रोहगुप्त थे। 7. भगवान महावीर के निर्वाण के 584 वर्ष बाद दशपुर नगर में अबद्धिक मत प्रारम्भ हुआ, इसके प्रवर्तक गोष्ठामाहिल थे।' जमालि के बहुरतवाद नामक सिद्धान्त की स्थापना और उसकी समीक्षा बहुरत - जब तक क्रिया पूरी न हो तब तक उसे निष्पन्न या कृत नहीं कहा जा सकता। यदि उसी समय उसे निष्पन्न कह दिया जाय तो शेष क्रिया व्यर्थ हो जाये, इसलिए क्रिया की निष्पत्ति अन्तिम समय में होती है। प्रत्येक क्रिया के लिए कई क्षणों की 5. (क) आवश्यकभाष्य, गाया 125-141 (ख) कल्याणविजयगणि, श्री पट्टावली पराग संग्रह, पृ. 68-76 (ग) स्थानांगसूत्र, 7/140-141 (घ) जैन धर्म के सम्प्रदाय, सुरेश सिसोदिय, वही, पृ. 47-54 (ङ) आचार्य देवेन्द्रमुनिजी, जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा (च) साध्वी राजीमति, पर्युषण साधना, वही, पृ. 270-282 (छ) विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 2304-2305 437 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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