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निकलता है, वह कहीं ओर प्रवेश करता है । अतः कार्मण शरीर द्वारा अगले जन्म प्रवेश की बात स्वतः सिद्ध हो जाती है।'
सर आलिवर लॉज, सर विलियम वारेट, रिचर्ड हडसन, मिसेज सिडफिक, वसर आर्थर कानन, ए.पी. सिनेट आदि परामनोवैज्ञानिकों ने विभिन्न प्रेतों से सम्पर्क स्थापित करके गम्भीर खोजें की हैं। ऐसा करके उन्होंने भारतीय धर्मों और दर्शनों द्वारा मान्य 'परलोकवाद' की सत्यता को परिपुष्ट किया है। प्रेतात्माओं को मानने पर देवों का अस्तित्व भी सिद्ध हो जाता है। 2
पाश्चात्य विचारकों ने देहान्तवाद को विकासवाद की तरह वास्तविक एवं वैज्ञानिक माना है। मृत्यु के अनन्तर जीव के अस्तित्त्व एवं अमरत्व की कल्पना ग्रीक दार्शनिक पायथागोरस के विचारों में स्पष्ट झलकती है कि साधुता का पालन करने पर जीव का जन्म, उच्चतर लोकों में होता है और दुष्कर्म का सेवन करने पर जीवात्माएँ पशु आदि योनियों में जाती हैं।
प्लेटो ने ग्रन्थ फीडो में, आत्मा की जीवन-यात्रा का वर्णन किया है, ये पुनर्जन्म को स्वतः सिद्ध मानते हैं। एम्पिडोक्स आदि का मन्तव्य था कि अगर पूर्वजन्म है तो पुनर्जन्म भी है। पूर्वजन्म एवं पुनर्जन्म दोनों साथ-साथ चलते हैं, इस प्रकार युनानी दर्शन में पुनर्जन्म की आस्था के बीज मिलते हैं ।
आधुनिक युग के दार्शनिक स्पिनोजा आदि दार्शनिकों का आत्मा की शाश्वतता में विश्वास था । कान्ट का आत्मा के लिए यह अभिप्राय मिलता है कि प्रत्येक आत्मा मूलतः शाश्वत है। लाइबनित्ज ने कहा प्रत्येक वस्तु अविनाशी है, उसके हृदय एवं अन्तरावर्तन
का नाम मृत्यु एवं उसकी वृद्धि तथा विकास का नाम जीवन है।
इस प्रकार स्फुट संकेत पुनर्जन्म एवं परलोक के अस्तित्व को सिद्ध करते हैं ।
2 कर्मविज्ञान भाग 1, वहीं, पृ. 101
3 जैनदर्शन में जीवतत्त्व, ज्ञानप्रभा, पृ. 380
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1 (क) आ. महाप्रज्ञ, घट-घट दीप जले, आदर्श साहित्य संघ प्रकाशन, चुरू, पृ. 55-57
(ख) कर्मविज्ञान, भाग 1, आ. देवेन्द्रमुनि, पृ. 101-114
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