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________________ 1. उपदेशात्मक धर्मकथात्मक 2. 3. 4. 27 | आचरणात्मक सिद्धान्तात्मक - 3 अध्ययन 1, 3, 4, 5, 6, 10 अध्ययन 7, 8, 9, 12, 13, 14, 18, 19, 20, 21, 22, 23, 25 और 4 - इसमें धर्म, दर्शन, इतिहास व तत्कालीन सामाजिक व राजनैतिक परम्पराओं का समावेश हो जाता है । दशवैकालिकसूत्र - दशवैकालिक प्रस्तुत आगम की अनवर्थकता इस रूप में है कि यह नाम दस और वैकालिक इन दो शब्दों के योग से निर्मित हुआ है। इसमें जो 'दस' शब्द हैं, वे अध्ययनों की संख्या के सूचक हैं, हमें ऐसा तथ्य भी स्वीकार्य है कि आचार्य शय्यंभव ने आगम साहित्य में से जो-जो विषयवस्तु संकलित की है, जब यह संकलन पूर्ण हुआ तब विकाल रहा हो, इसी आशय से इसका नामकरण भी दशवैकालिक रखा गया है। यह सोच भी तथ्यपूर्ण प्रतीत होती है । इसके रचयिता श्रुतकेवजी आर्य शय्यंभव हैं। इसमें मुनियों के आचार-विचार का निरूपण है । इसमें चरण और करण दोनों का अनुयोग है अर्थात मूलगुण' और उत्तरगुण' दोनों का अन्तर्भाव है । अध्ययन 2, 11, 15, 16, 17, 24, 26, 32, 35 | अध्ययन 28, 29, 30, 31, 33, 34, 36 | Jain Education International आध्यात्मिक साधना की पूर्णता और सम्पन्नता के लिए श्रद्धा और ज्ञान ये दोनों पर्याप्त नहीं हैं । किन्तु उसके लिए आचरण भी आवश्यक है क्योंकि सम्यक् आचरण के अभाव में आध्यात्मिक परिपूर्णता नहीं आ पाती है। इसमें आचरण सम्बन्धी निरूपण विशेष रूप से किया गया है। यह आगम दस अध्ययन और दो चुलिकाओं में विभक्त है, इसकी विषयवस्तु प्रत्येक श्रमण के लिए श्रेयस्कर है। प्रथम अध्ययन में श्रमण के लिए यह सूचना है आहार विधि का किस रूप में ज्ञाता बने, द्वितीय अध्ययन में श्रमण को कामराग से बचने के लिए रथ और राजीमति का प्रसंग दिया है। तीसरे अध्ययन में साधु के लिए जो 1 जिनवाणी (जैनागम विशेषांक), पृ. 320 2 जिनवाणी (जैनागम विशेषांक), वही, पृ. 363 चरणमूलगुणाः, प्रवचनसारोद्धार, गाथा 552 करणं उत्तरगुणाः, प्रवचनसारोद्धार, गाथा 553 - 27 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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