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पंचाग्नि की चर्चा की गयी है और पुनर्जन्म के जैविक आधार को प्रस्तुत करते हुए कहा गया है कि “आत्मा अन्न रूप होकर पुरुषाग्नि में हवन की जाती है, जहाँ वह वीर्यरूप बनती है। इसे योषाग्नि में हवन किया जाता है और वहाँ वह मनुष्य रूप में विकसित होकर गर्भ से उत्पन्न होती है।"
ऋग्वेद में देवयान और पितृयान शब्दों का प्रयोग है, परन्तु इन मार्गों का वर्णन उपलब्ध नहीं है किन्तु उपनिषदों में दोनों मार्गों का विशद विवरण है। कौषीतकी उपनिषद में देवयान व पितृयान दोनों का वर्णन किया है। संक्षेप में ब्राहमी भाव को प्राप्त कर लेने वाले जीव जिस मार्ग से ब्रह्मलोक जाते हैं, उसे देवयान कहते हैं, किन्तु जो कर्मवश चन्द्रलोक में जाकर पुन: लौट आते हैं, उस मार्ग का नाम पितृयान है। ये दोनों मार्ग कर्मानुसार हैं, देवयान मार्ग से जाने वाले पुनः नहीं लौटते और पितृयान से जाने वाले लौटते हैं।
छान्दोग्य-उपनिषद में उल्लेख है कि जिसका आचरण रमणीय है, वह मरकर शुभ-योनि में जन्म लेता है और जिसका आचरण दुष्ट होता है, वह कूकर, शूकर, चाण्डाल आदि अशुभ योनियों में जन्म लेता है।
नचिकेता ने यमराज से पूछा कि, “मृत्यु के बाद मनुष्य का अस्तित्व रहता है या नहीं? आप मुझे बतायें।" यमराज ने नचिकेता से कहा – “जो लोग परलोक में विश्वास नहीं करते वे अविवेकी और मूढ़ हैं। इस प्रकार के लोग बार-बार जन्म-मृत्यु के अधीन होते हैं।" उन्होंने बतलाया कि - आत्मा का जन्म और मृत्यु नहीं होता। वह अज, नित्य तथा शाश्वत है। शरीर के पतन होने के पूर्व जो ब्रह्म (आत्मा) को नहीं जान लेता, उसको पुनः शरीर धारण करके प्राणी के गर्भ में अथवा स्थावर जगत् में प्रवेश करना पड़ता है। अर्थात् जन्मान्तरवाद और परलोकवाद सत्य है। भगवद्गीता में पुनर्जन्म की अवधारणा
, वैदिक धर्मशास्त्र का सार और मध्यमणिस्वरूप श्रीमद् भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने पुनर्जन्म और परलोक का वर्णन किया है।
1 पुनर्जन्म का सिद्धान्त, डा. एस.आर. व्यास, पृ. 22 2 छान्दोग्योपनिषद, 5/10/7 3 शैलेष जी ब्रह्मचारी, कल्याण, वही, लेख - जन्मान्तर तथ्य, पृ. 295
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