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• ब्रह्मा के तृतीय सत्यलोक में - 1. अच्युत, 2. शुद्ध निवास, 3. सत्याभ, 4. संज्ञासंज्ञी।'
__इन सब देवलोक में बसने वालों की आयु दीर्घ होते हुए भी परिमित होती है। इनको भी वहाँ से च्यवन कर नया जन्म धारण करना पड़ता है।
ऋग्वेदकाल के आर्यों ने पापी पुरुषों के लिए नरक-स्थान की कल्पना नहीं की थी, किन्तु उपनिषदों में यह कल्पना विद्यमान है। उपनिषदों के अनुसार नरकलोक अन्धकार से आवृत है, जिसमें आनन्द का नाम नहीं है। इस संसार में अविद्या के उपासक मरणोपरान्त नरक को प्राप्त होते हैं।
योगदर्शन व्यासभाष्य में नरकों के 7 नाम बताये हैं -
1. महाकाल
2. अम्बरीष
3. कौरव
5. कालसूत्र
6. अन्धतामिस्र
4. महाकौरव 7. अवीचि।
इन नरकों में जीवों की आयु लम्बी होती है, वहाँ उनको अपने किए हुए कर्मों के कटु फल मिलते हैं। वे वहाँ कष्ट भोगते रहते हैं।'
• उपनिषदों में पुनर्जन्म को सिद्धान्त के रूप में प्रस्तुत किया है। इस दृष्टि से बृहद् एवं छान्दोग्योपनिषद का 'पंचाग्निविद्या' का सिद्धान्त महत्त्वपूर्ण है। राजा प्रवाहण श्वेतकेतु नामक ऋषिपुत्र के सामने पाँच प्रश्न रखता है - 1. शरीर से छूटकर आत्माएँ परलोक में एक-दूसरे से कैसे अलग होती हैं? 2. किस प्रकार आत्माएँ पुनः संसार में आती हैं? 3. यहाँ से जाने वाली सभी आत्माओं को रखने पर भी परलोक क्यों नहीं भरता?
मानव-ध्वनि से युक्त होकर पानी बोलने योग्य कब हो जाता है? 5. कौनसा मार्ग पितृलोक एवं देवलोक को जाता है?
इनमें से पुनर्जन्म की दृष्टि से तीसरा एवं चौथा प्रश्न महत्त्वपूर्ण है, इनके उत्तर में ही पुनर्जन्म का सिद्धान्त प्रस्तुत किया गया है। परलोक इसलिए नहीं भरता है क्योंकि आत्माओं का आवागमन होता रहता है। पानी के मानव-ध्वनि से युक्त होने के प्रश्न में
' योगदर्शन, व्यासभाष्य, विभूतिपाद, 26, उद्धृत - गणधरवाद, पृ. 156 2 गणधरवाद, प्रस्तावना, पृ. 157
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