________________
और सोम पर्याप्त मात्रा में मिलता है एवं उनकी सभी कामनाएँ पूर्ण होती हैं।' कुछ विष्णु अथवा वरुणलोक में जाते हैं। वरुणलोक सर्वोच्च स्वर्ग है । वरुणलोक में जाने वाले मनुष्य की सभी कमियाँ दूर हो जाती हैं। वहाँ रहते हुए उसे अपने पुत्रादि द्वारा श्राद्ध-तर्पण में अर्पित पदार्थ भी मिल जाते हैं ।
उपनिषदों में आत्मा के स्वरूप की व्याख्या करने के बाद परलोक व पुनर्जन्म पर विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। जहाँ पहले परलोक के अन्तर्गत एक लोक की ही धारणा थी, तदनन्तर स्वर्ग-नरक की धारणा विकसित हुई ।
वृहदारण्यक उपनिषद् में मनुष्यलोक से ऊपर ऊर्ध्व लोक के विषय में विचार किया गया है 1. पितृलोक 2. गन्धर्वलोक 3. प्रजापतिलोक व 4. ब्रह्मलोक । इन लोकों में आनन्द उत्तरोत्तर बढ़ता जाता है।
•
•
·
•
•
•
योगदर्शन के व्यासभाष्य में बताया गया है कि
पाताल, जलधि तथा पर्वतों में असुर, किन्नर, किंपुरुष, यक्ष, राक्षस, भूत, प्रेत, पिशाच, अपस्मारक, अप्सरस्, ब्रह्मराक्षस, कुष्माण्ड, विनायक आदि देवनिकाय निवास करते हैं ।
भूलोक के समस्त द्वीपों में पुण्यात्माओं का निवास है ।
सुमेरु पर्वत पर देवों की उद्यान भूमियाँ हैं सुधर्मा नामक देव सभा है, सुदर्शन नाम की नगरी है और उसमें वैजयन्त प्रसाद है ।
अन्तरिक्षलोक के देवों में
स्वर्गलोक में 6 देवनिकाय
5. अपरिनिर्मितवशवर्ती व 6. परिनिर्मितवशवर्ती ।
प्रजापतिलोक में पाँच देवनिकाय
5. प्रचिताभ ।
ब्रह्मा के प्रथम जनलोक में
4. अमर ।
ब्रह्म के द्वितीय तपोलोक में
ऋग्वेद, 9/113.7
2 ऋग्वेद 10/14/8-10/15/7 बृहदारण्यक उपनिषद, 4/3/33
3
Jain Education International
ग्रह, नक्षत्र और तारों का निवास है ।
-
-
1. त्रिदश, 2. अग्निष्वाता 3 याम्या, 4. तुषित,
--
1. कुमुद, 2 ऋभु 3 प्रतर्दन, 4. अंजनाभ,
1. ब्रह्म पुरोहित, 2. ब्रह्मकायिक, 3. ब्रह्ममहाकायिक,
1. आभास्वर, 2. महाभास्वर, 3. सत्यमहाभास्वर
421
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org