________________
यह मान्यता प्रचलित थी कि उसके साथ वस्त्र-आभूषण रखे जाते थे, जिससे उसे अगले जन्म में ऋद्धि मिले। ऋग्वेद में पुनर्जन्म के सम्बन्ध में स्पष्ट चर्चा प्राप्त नहीं होती, किन्तु संकेत अवश्य प्राप्त होते हैं, उदाहरण के लिए यह कथन है -
"तुम्हारा मन जो विवस्वान् के पुत्र यम के पास गया है, उसे हम लौटा लाते हैं। तुम इस संसार के निवास के लिए हो। तुम्हारा मन जो दूरस्थ जल के भीतर व वृक्ष लतादि में गया है, उसे हम लौटाते हैं।"
इस प्रकार प्रकृति की परिवर्तनशीलता और निरन्तरता को पुनर्जन्म की धारणा को पुष्ट बनाने में महत्वपूर्ण कारण माना है। ऋग्वेद में कई ऐसे कथन हैं – जैसे “जब वह अपने कर्तव्य कर्मों को समाप्त कर लेता है और वृद्ध हो जाता है तब इस संसार से विदा हो जाता है और यहाँ से विदा होते हुए एक बार फिर जन्म लेता है।
ऋग्वेद में पुनर्जन्म की धारणा बीज रूप में थी, जो विकसित होते हुए उपनिषदों में आकर भारतीय चिन्तन के महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त के रूप में प्रस्तुत हुई।
' ऋग्वेद के बाद ब्राह्मण ग्रन्थों में पुनर्जन्म व परलोक का वर्णन मिलता है। पितरलोक में पुनर्जन्म होने का उल्लेख प्राप्त होता है, जिसमें कहा गया है कि मृत्यु के उपरान्त पुण्यात्मा और पापात्मा दोनों ही परलोक में जन्मते हैं और अपने कर्मों का फल भोगते हैं। पुनर्जन्म के सिद्धान्त को विकसित करने के लिए जितने भी सुझाव सम्भव हो सकते हैं, वे सब ब्राह्मण ग्रन्थों में निहित हैं।
__वेदों में ऋत एवं इष्टापूर्ति की अवधारणा मिलती है। ऋत नैतिक व्यवस्था का प्रतीक है, जिसके अनुसार प्रत्येक कर्म अपने अनुरुप उचित फल पैदा करता है, और कर्ता को उसका फल भोगना ही पड़ता है। तथा इष्टापूर्ति की धारणा में, मृत्यु के उपरान्त जीवन तथा उस जीवन में अपने मूल कर्मों के फलों की प्राप्ति की संकल्पना निहित है।
वैदिक मान्यतानुसार – इस लोक में जो मनुष्य शुभ कर्म करते हैं, वे मरकर स्वर्ग में यमलोक पहुंचते हैं। यह यमलोक प्रकाश-पुंज से व्याप्त है। वहाँ उन लोगों को अन्न
। ऋग्वेद, 10/85/17 - उद्धृत - पुनर्जन्म का सिद्धान्त, पृ. 18 2 ऋग्वेद, 4/27/1 3 शतपथ ब्राह्मण, 11/6/3/1
420
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org