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________________ वैशेषिक दर्शन में पुनर्जन्म की अवधारणा : नैयायिक और वैशेषिक दोनों आत्मा को नित्य मानते हैं, अतः पुनर्जन्म को भी स्वीकार करते हैं । न्याय 'मिथ्याज्ञान से राग-द्वेष और मोह होता है, मोह से आसक्ति होती है, आसक्ति से कर्म करने की प्रवृत्ति होती है। शरीर, वचन एवं मन के द्वारा मनुष्य कर्म करता है, जिसका फल भोगने के लिए जन्म लेना पड़ता है।' जब तक धर्माधर्म प्रवृत्ति जन्य संस्कार बने रहेंगे, तब तक शुभाशुभ कर्मफल भोगने के लिए जन्म-मरण का चक्र चलता रहेगा और जीव नये-नये शरीर ग्रहण करता रहेगा। पुनर्जन्म की सिद्धि के लिए दोनों दर्शनों के मुख्य तर्क इस प्रकार हैं हँसते हुए नवजात शिशु को देखकर प्रतीत होता है कि वह हर्ष का अनुभव कर रहा है। इष्ट विषय की प्राप्ति होने पर हर्ष तथा अनिष्ट विषय की प्राप्ति से शोक होता है, बच्चे को उस अवस्था में यह ज्ञान नहीं होता है किन्तु पूर्वभव के संस्कार होने से विषयों की उपस्थिति होते ही वे संस्कार जागृत हो जाते हैं, तभी वह हर्ष या शोक को प्रकट करता है। संस्कारों के ज्ञान से पूर्वजन्म सिद्ध होता है । 'सिद्धिविनश्चय' टीका में इसी प्रकार पुनर्जन्म की सिद्धि की गई है "जिस प्रकार एक युवक का शरीर शिशु की उत्तरवर्ती अवस्था है, इसी प्रकार नवजात शिशु का शरीर भी पूर्वजन्म के पश्चात् होने वाली अवस्था है ।" यदि ऐसा नहीं मानते हैं तो पूर्वजन्म में अनुभूत विषय का स्मरण और तद्नुसार प्रवृत्तियाँ नवजात शिशु में नहीं हो सकती, किन्तु प्रवृत्तियाँ होती हैं, इसलिए पुनर्जन्म को और उससे सम्बद्ध पूर्वजन्म को मानना अनिवार्य है । 1 (क) कर्मविज्ञान, आचार्य देवेन्द्रमुनि, भाग 1, पृ. 66 (ख) सिद्धिविनश्चय टीका, 4/14 - वेद-उपनिषदों में पुनर्जन्म की अवधारणा भारतीय चिन्तन ऋग्वेद से प्रारम्भ होता है, जो सबसे प्राचीन ग्रन्थ माना गया 1 ऋग्वेद में जीवन के इहलौकिक पक्ष पर अधिक बल दिया गया है। साथ ही साथ पराजीवन के भी संकेत मिलते हैं, जैसे कि मृतक के बारे में अपनाए गए रीति-रिवाज़ों में Jain Education International 419 For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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