SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 444
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वावतिस, याम, तुसित, निम्मानरति, परिनिम्मितवसवति नाम के देव निकायों का समावेश काम-सुगति नाम की कामावचर भूमि में है। उनमें कामभोग की प्राप्ति होती है। रुपावचर भूमि में उत्तरोत्तर सुख वाले सोलह देव निकायों का समावेश है, वे ये हैं प्रथम ध्यान भूमि में - 1. ब्रह्मपारिसज्ज 2. ब्रह्मपुरोहित 3. महाब्रह्म द्वितीय ध्यान भूमि में - 4. परित्ताभ 5. अप्पमाणाभ 6. आभस्सर तृतीय ध्यान भूमि में – 7. परित्तसुभा 8. अप्पमाणसुभा 9. सुभकिण्हा चतुर्थ ध्यान भूमि में - वेहप्फला 11. असञसत्ता पाँच प्रकार के सुद्धावास - 12. अविहा 13. अतप्पा 14. सुदस्सा 15. सुदस्सी 16. अकनिट्ठा। अरुपावचर भूमि में उत्तरोत्तर अधिक सुख वाली चार भूमि हैं - आकासानंचायतन भूमि विज्ञाणञ्चायतन भूमि अकिचंञायतन भूमि नेवससानासज्ञायतन भूमि। जातक में आठ नरक बताये हैं - 1. संजीव 2. कालसुत्त 3. संधात 4. जालरोव 5. धूमरोरुव 6. तपन 7. प्रतापन 8. अवीचि।' महावस्तु में प्रत्येक नरक के 16 उस्सद (उपनरक) स्वीकार किये हैं, इस प्रकार . सब मिलकर 128 नरक हैं। इस प्रकार बौद्ध दर्शन में परलोक के अन्तर्गत स्वर्ग एवं नरक की दो धाराएँ नैतिक दृष्टि से व्यवस्था के रूप में मानी गई हैं। वहाँ जाकर व्यक्ति अपने कर्मफलों को भोगता है तथा बौद्ध दर्शन में पूर्वजन्म की उपयोगी घटनाओं का महत्त्वपूर्ण उल्लेख आता है। । दलसुखभाई मालवणिया, गणधरवाद, वही, पृ. 158 418 Jain Education International , For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy