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________________ जब आत्मा अमर नहीं है तो स्वर्ग और नरक का विचार भी कल्पनामात्र है। उनके । अनुसार यदि मानव मृत्यु के बाद स्वर्ग तथा नरक में जाता तो वह अपने मित्रों तथा सम्बन्धियों के दुःख और रुदन से अवश्य लौट आता, परन्तु वह नहीं आता है, अतः स्वर्ग और नरक का कथन बकवास मात्र है। चार्वाक्दर्शन के अनुसार स्वर्ग-नरक इसी संसार में निहित हैं, इस विश्व में जो व्यक्ति सुखी है वह स्वर्ग में है और जो व्यक्ति दुःखी है वह नरक में है। ‘सुखमेव स्वर्गम् दुःखमेव नरकम्' अर्थात् सुख ही स्वर्ग है और दुःख ही नरक है। इस लोक के अतिरिक्त चार्वाक दूसरे लोक की सत्ता का खण्डन करता है क्योंकि पारलौकिक जगत् के अस्तित्व का कोई प्रमाण नहीं है।' बौद्धदर्शन में पुनर्जन्म ____ अनात्मवादी दर्शन होते हुए भी बौद्धदर्शन ने पुनर्जन्म के सिद्धान्त को समर्थन दिया है। वहाँ कर्मफल के रुप में परलोक की चर्चा की गयी है। ... बोधि प्राप्त करने के पश्चात् तथागत बुद्ध को अपने पूर्वजन्मों का स्मरण हुआ था। एक बार उनके पैर में काँटा चुभ जाने पर उन्होंने अपने शिष्यों से कहा – “भिक्षुओं! इस जन्म से इकानवे जन्म पूर्व मेरी शक्ति से एक पुरुष की हत्या हो गई थी, उसी कर्म के कारण मेरा पैर काँटे से बिंध गया है। इस प्रकार बुद्ध ने अपने-अपने कर्म से प्रेरित प्राणियों को विविध योनियों में गमनागमन करते हुए प्रत्यक्ष देखा था। उन्हें यह ज्ञान हो गया था कि अमुक प्राणी उसके अपने कर्मानुसार किस योनि में जन्मेगा। सर्वप्रथम महात्मा बुद्ध ब्रह्मलोक या परलोक को न मानकर इहलोक को ही मानते थे। वे प्रत्यक्ष दुःख, उसके कारण और दुःख निवारक मार्ग का उपदेश करते थे परन्तु जैसे-जैसे उनके उपदेश धर्म और दर्शन के रुप में परिणत हुए, वैसे-वैसे आचार्यों को स्वर्ग, नरक, प्रेत आदि समस्त परोक्ष पदार्थों का भी विचार करना पड़ा और उन्हें बौद्ध धर्म में स्थान देना पड़ा। 1 "भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः", उद्धृत 'प्रो. हरेन्द्र प्रसाद सिन्हा, भारतीय दर्शन की रूपरेखा, पृ. 76 2 'इत एकनवते कल्पे शक्त्या में पुरुषो हतः। तेन कर्मविपाकेन पादे, विद्धोऽस्मि भिक्षवः।। - षड्दर्शनसमुच्चय टीका 416 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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