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4.
5.
6.
लान्तक
नवग्रेवेयक के नाम
1. सुदर्शन
2.
3.
4.
2.
5.
विशाल
पाँच अनुत्तर विमान
1.
विजय
जयन्त
1.
माहेन्द्र
ब्रह्मलोक
2.
प्रतिबद्ध
3. सर्वार्थसिद्ध'
जैनदर्शन में सात नरक माने गए हैं।
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रत्नप्रभा
3.
मनोरम
सर्वभद्र
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1
(क) तत्त्वार्थसूत्र, 4 / 20 (ख) सोहम्मईसाण सणकुमार
2 तत्त्वार्थसूत्र, 3/1
10.
11.
412
12.
6.
7.
8.
9.
4.
5.
5.
बालुकाप्रभा
धूमप्रभा
4.
महातमः प्रभा
जो पुण्यात्मा होते हैं वे ही देवगति में या देवलोक में जाकर सुख भोगते हैं । देवों के औदारिक शरीर न होकर वैक्रिय शरीर होता है। फलस्वरूप उनके शरीर में अस्थि, मांस, रक्त, धातु, मज्जा, मल, मूत्र, स्वेद नहीं होता है। उनको निद्रा नहीं आती है, किसी प्रकार का रोग नहीं होता तथा भूख-प्यास भी नहीं लगती। वहाँ सुन्दर देवियाँ होती हैं, जिनके साथ नाना प्रकार के भोग-विलास करते हैं। देव-देवियों की उत्पत्ति उपपात शय्या पर होती है। उपपात के कुछ समय बाद ही वे युवा हो जाते हैं, और तत्पश्चात् आजीवनपर्यन्त युवा ही बने रहते हैं। देवों की न्यूनतम आयु 10 हजार वर्ष की और
6.
7.
देवा य, प्रज्ञापना, पद 6
प्राणत्
आरण
अच्युत्, देवलोक
सुमनस्
सौमनस
प्रियंकर
आदित्य
विजयन्त
अपराजित
शर्कराप्रभा
पंकप्रभा
तमः प्रभा
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